अपनी गलतियों को न देखना ही अंधापन है
भौतिकता की दौड़ में हम अपने लिए कुछ पल भी न निकाल सकें। बाहर की इस वेलगाम दौड़ में हम कुछ क्षण अपने भीतर झाँकने के लिए न दे पाए। समय देखते ही देखते निकल गया लेकिन हमारे लिए कुछ यादें भी छोड़ गया। हमने कुछ अच्छे काम किये तो बहुत सारीं गलतियाँ भी की। बीते समय को वापस तो नहीं लाया जा सकता है मगर मूल्यांकन करना आवश्यक है।
जो गलतियाँ बीते समय में हमसे हो गईं, समय चला गया, अब तो कुछ नहीं किया जा सकता है मगर मूल्यांकन अवश्य किया जा सकता है। आने वाले समय में हम उनमें सुधार लाएं ऐसा प्रयास तो किया ही जा सकता है। गलती करना बुरी बात नहीं मगर उसे दोहराना अवश्य बुरी बात है। अंधा वो नहीं जिसकी आँखें नहीं अपितु अंधा वो है जिसे अपनी गलती दिखाई नहीं देती है।
अपनी गलतियों को न देखना ही अंधापन है और यह अंधापन ही तो हमारे प्रगतिपथ को अवरुद्ध करता है। जीवन में हर पल नई ऊचाईयों को छूने के लिए बहुत जरूरी हो जाता है कि कुछ पल स्वयं के साथ बिताये जाये, कुछ पल स्वनिरीक्षण में लगाये जाये।