सेवा सभी की करना मगर आशा किसी से भी ना रखना
सेवा सभी की करना मगर आशा किसी से भी ना रखना क्योंकि सेवा का वास्तविक मूल्य भगवान् ही दे सकते हैं इंसान नहीं। जगत से अपेक्षा रखकर कोई सेवा की गई है तो वो एक ना एक दिन निराशा का कारण जरूर बनेगी। इसलिए अच्छा यही है अपेक्षा रहित होकर सेवा की जाए।
अगर सेवा का मूल्य ये दुनिया अदा कर दे, तो समझ जाना वो सेवा नहीं हो सकती। सेवा कोई वस्तु थोड़ी है जिसे खरीदा-बेचा जा सके। सेवा पुण्य कमाने का साधन है प्रसिद्धि नहीं।
दुनिया की नजरों में सम्मानित होना बड़ी बात नहीं। गोविन्द की नजरों में सम्मानित होना बड़ी बात है। सुदामा के जीवन की सेवा-समर्पण का इससे ज्यादा और श्रेष्ठ फल क्या होता, दुनिया जिन ठाकुर के लिए दौड़ती है वो उनके लिए दौड़े। प्रभु के हाथों से एक ना एक दिन सेवा का फल जरूर मिलेगा।