जब तक शरीर है, तब तक व्यवहार अनिवार्य है


भारतभूमि कर्म भूमि है अन्य देश भोगभूमि हैं। हमारे यहाँ कर्मानुसार फल मिलते हैं। अतः प्रत्येक कर्म को प्रभु की आज्ञा मानकर करो। 


प्रभु को प्रसन्न करने के लिए किया गया कर्म ही भक्ति है। कर्म में फलेच्छा रखना कपट है। कर्म करते समय मन ईश्वर में संलग्न रहे तो प्रत्येक क्रिया भक्ति बन जायेगी। 


जब तक शरीर है, तब तक व्यवहार अनिवार्य है। प्रत्येक कर्म को भक्तिमय बना दो। जब हम अपने सभी कर्म ईश्वर को अर्पण करते रहेंगे तो ठाकुर जी हमारी मति में सद्भाव और ज्ञान के रत्न भर देंगे।


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