जीवन तभी कष्टमय होता है, जब वस्तुओं की इच्छा करते हैं
यदि वस्तु मिलनेवाली है तो इच्छा किये बिना भी मिलेगी और यदि वस्तु नहीं मिलने वाली है तो इच्छा करने पर भी नहीं मिलेगी। अतः वस्तु का मिलना या न मिलना इच्छा के अधीन नहीं है, प्रत्युत किसी विधान के आधीन है।
जो वस्तु इच्छा के अधीन नहीं है, उसकी इच्छा को छोड़ने में क्या कठिनाई है ? यदि वस्तु की इच्छा पूरी होती हो तो उसे पूरी करने का प्रयत्न करते और यदि जीने की इच्छा पूरी होती हो तो मृत्यु से बचने का प्रयत्न करते। परन्तु इच्छा के अनुसार न तो सब वस्तुएँ मिलती हैं और न मृत्यु से बचाव ही होता है।
यदि वस्तुओं की इच्छा न रहे तो जीवन आनन्दमय हो जाता है और यदि जीने की इच्छा न रहे तो मृत्यु भी आनन्दमयी हो जाती है। जीवन तभी कष्टमय होता है, जब वस्तुओं की इच्छा करते हैं।