अर्पण
प्रभुजी, तूं ही मम् अवलम्बन!
प्रभुता तेरी है स्वीकार अब
वैभव तन-मन अर्पण
मानव की माया मृगतृष्णा
चरमोत्कर्ष पर छल-सुषुम्ना
भटकते नर को राह दिखाने
मनसा वाचा कर्मण
जिस प्रकृति ने हमको पाला
उसे दिया मैं घाव का छाला
उन छालों की शूल से घायल
मानव का पागलपन
क्षमादान दो जग अन्तर्यामी
त्राहिमाम करता नर, स्वामी
संकटमोचन बन उद्धार करो
अब घुटनाटेक समर्पण
प्रभाष_अकिंचन