संसार में सुनने के लिए दो ही बातें हैं, भगवान की कथा और संसार की व्यथा


संसार में सुनने के लिए दो ही बातें हैं, भगवान की कथा और संसार की व्यथा। जहाँ कथा है वहाँ भाव है, जहाँ व्यथा है वहाँ भव है या ऐसा कहो कि जहाँ भव है वहाँ भाव नहीं, जहाँ भाव है वहाँ भव नहीं !
भाव का अभाव भव है, भव का उपाय भाव है। भव में डूबे तो मरे, भाव में डूबे तो तरे। यह रामकथा भाव में डुबाकर भव से उबार लेती है।
भव सागर चह पार जो पावा।
राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा।।
भगवान की कथा ऐसी दृढ़ नौका है कि यदि इस नाव में भाव सहित बैठ जाएँ, तो भवसागर से सहज ही पार पाया जा सकता है, भगवान की कथा सुनने से भगवान का स्वाभाविक स्मरण होने लगता है, भगवान का स्मरण ही भाव है, विस्मरण ही भव !
भगवान तो सदा साथ ही हैं, पर प्रश्न यह है कि हम भगवान के साथ हैं या नहीं? भगवान का विस्मरण ही संसार की सबसे बड़ी समस्या है, और समस्या तभी तक समस्या है जबतक भगवान का स्मरण नहीं होता, उनका स्मरण ही एकमात्र समाधान है !
सौभाग्य देखिए हमें यह नाव अपने आप ही मिलती रही है, सबसे पहले परम पवित्र भारत भूमि पर जन्म का मिल जाना वह भी सींग वाला नहीं, पूंछ वाला नहीं, रेंगने, तैरने या उड़ने वाला नहीं, मनुष्य कहलाने वाला शरीर मिला है। सनातन हिन्दू परम्परा विरासत में मिल गई है। खाने को रोटी है, पहनने को कपड़ा है, घर बैठे संत संग और सत्संग मिलता है, कमी क्या रही? कुछ नहीं...बस इतना मात्र स्मरण रहे कि भगवान की स्मृति न छूटने पाए। इतना कर लिया तो बहुत कर लिया, तब तो पार हुए ही समझो !


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