किसी राज्य को मज़दूर को अस्वीकार करने का हक नहीं - सुप्रीम कोर्ट


नई दिल्ली। देश भर में फंसे प्रवासी मजदूरों की समस्या और उन पर आई विपत्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। पिछली सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र सरकार और देश भर के राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था।


प्रवासी मज़दूरों पर सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई जवाब तलब -


जज- सबको भेजने में कितना समय लगेगा? व्यवस्था क्या रहेगी? लोगों को कैसे पता चलेगा कि किस दिन भेजा जाएगा? जब भेजा जाएगा, तब तक देखभाल की क्या व्यवस्था होगी?
सॉलिसीटर जनरल- कितनों को भेजना है कि जानकारी के लिए राज्य से बात करनी होगी। हम रिपोर्ट दाखिल करेंगे।


सॉलिसीटर जनरल- जिन लोगों ने चिट्ठी लिख कर आपकी संज्ञान लेने के लिए कहा वह करोड़ों में कमाते हैं। घर बैठे हैं। 1 पैसा खर्च नहीं कर रहे।


जस्टिस कौल- अगर कुछ लोग न्यायपालिका को अपने हिसाब से चलाना चाहते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। हम अपनी अंतरात्मा के हिसाब से न्याय के लिए काम करेंगे।


सिब्बल ने कुछ बोलने की कोशिश की। सॉलिसीटर जनरल ने एतराज जताया। कहा- यह कौन हैं? मामला सुप्रीम कोर्ट, केंद्र और राज्यों के बीच का है।


सिब्बल ने 2 संस्थाओं का नाम लिया। कहा मैं उनका वकील हूँ


जज- आपके पास कोई सुझाव है तो बोलें


सिब्बल- इनसे पूछिए कि कितनी ट्रेन चलेगी? लोगों को क्या आर्थिक मदद दी गई


सॉलिसीटर जनरल ने बड़े वकीलों की चिट्ठी पर संज्ञान लिए जाने पर एतराज़ जताया। कहा- कुछ लोग नकारात्मकता से भरे हैं। उनमें देशप्रेम नहीं है। यह उस फोटोग्राफर की तरह जिसने मौत की कगार पर पहुंचे बच्चे और गिद्ध की तस्वीर खींची थी। उससे एक पत्रकार ने कहा था कि वहां 1 नहीं 2 गिद्ध थे। 


जज- जब मज़दूर की पहचान हो जाए तब कोई समय सीमा होनी चाहिए जिसमें उसे भेज दिया जाएगा। अलग अलग राज्य ने अलग नियम बना रखे हैं मज़दूरों को स्वीकार करने पर। यह भी सही नहीं। किसी राज्य को मज़दूर को अस्वीकार करने का हक नहीं। चाहे आर्थिक कारण से आना चाहे या मानसिक राहत के लिए। आने दें!


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