संसार रूपी समुद्र में तरंग जैसे प्रतिकूल प्रसंग तो रोज आयेंगे


जीव इस जगत में पाप और पुण्य दोनों लेकर आता है। पुण्य का फल सुख और पाप का फल दुख है। ऐसा कोई जीव नहीं जो अकेला पुण्य लेकर ही आया हो। 


प्रत्येक जीव पाप और पुण्य दोनों लेकर आते हैं। इस प्रकार सबको सुख और दुख दोनों प्रारब्ध के अनुसार प्राप्त होते हैं। सभी अनुकूलता मुझको मिलनी चाहिये, ऐसी आशा रखना व्यर्थ है। 


संसार रूपी समुद्र में तरंग जैसे प्रतिकूल प्रसंग तो रोज आयेंगे। संसार में जो आया है उसको नित्य किसी न किसी प्रकार की प्रतिकूलता रहती ही है। बस इन्हीं तरंगों के मध्य प्रभु के चरणों का आश्रय लेते हुए इस सागर को पार करना है।


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