समस्याओं के आगे भी डिगना नहीं, टिकना सीखो


भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला, प्रत्येक कर्म अपने आप में कुछ विशेष अर्थ, कुछ विशेष संदेश लिये हैं। सात वर्ष के कन्हैया ने सात दिनों तक सात कोसीय गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊंगली पर उठाया और नाम पड़ा गिरिधर या गिरिधारी। 


आज इस लीला के रहस्य से पर्दा उठाने का प्रयास करते हैं। मानव जीवन कठिनाइयों और चुनौतियों से भरा पड़ा है। कन्हैया जितने छोटे हैं, पर्वत उतना ही विशाल। इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि जीव जितना दुर्बल अपने आप को समझने लगता है, उसकी समस्या भी उसी अनुपात में अपना रूप धारण कर लेती है।


इस स्थिति में उसके  पास दो विकल्प होते हैं। या तो जीवन की चुनौतियों को स्वीकार किया जाए या घुटने टेककर उस समस्या को अपने ऊपर हावी होने दिया जाए। दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति के बल पर छोटे से कन्हैया ने बड़ी ही निर्भीकता और सुगमता के साथ उस विशाल गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। जीवन की समस्याएं भले ही पहाड़ जितनी विशाल हों लेकिन अपने आत्मविश्वास को डिगाए बिना, मजबूत इच्छाशक्ति के साथ उसका सामना किया जाए तो हम पायेंगे कि बड़े ही आसानी से उसका निराकरण भी हो गया। समस्याओं के आगे भी डिगना नहीं, टिकना सीखो।


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