ताज्जुब है कि इतना सब जानते हुए भी तमाशा पिछले सत्तर सालो से चल रहा है
राजनैतिक पार्टियां एक ऐसी नदी स्वरूपा है जिनमें गोते लगाकर दंगा, हिंसा और आतंकवाद जैसे अपराधों के पाप भी धुल जाते है और व्यक्ति निष्कलंक पवित्र हो जाता है। उसका रोम रोम देश की संसद और विधान सभाओं तक पँहुचने के लिए अर्ह हो जाता है।
उनके नेता जनता को मूर्ख समझते हैं। वे सोचते है कि दुनियां के सबसे चतुर प्राणी वे ही है। वे यह बात भूल जाते है कि आज का समाज उन बेरोजगार युवाओं से मिलकर बना है जो आईएएस के साक्षत्कार तक पँहुच कर वापस लौटे थे। ऐसे युवा व्यक्ति का कद देखकर ज़मीन के अंदर उसकी बोरिंग माप लेते हैं।
आज के समाज को मूर्ख बनाना आसान नही है बल्कि अपनी छीछालेदर अपने हाथों करवाने का पर्याय है।
प्रत्येक शासनकाल का विपक्ष भी यही चाहता रहा है कि अगले चुनावो में भ्रष्टचार करने का अधिकार इन्हें मिल जाये। इनका भ्रष्टचार इतना पवित्र होगा कि जनता अपने आप सुखी हो जाएगी।
ताज्जुब है कि इतना सब जानते हुए भी यह तमाशा पिछले सत्तर सालो से चल रहा है।
(निखिलेश मिश्रा)