आठवीं फेल को रोजगार नहीं , राजनीति में कुर्सी मिलती है


देश में एक बार फिर मौखिक क्रांति हुई है। मौखिक क्रांति बोले तो हल्ला... सब सरकार से रोजगार मांग रहे हैं। मांगना ही चाहिए। सरकार जनता को मकान देती है, अनाज देती है, पैसा देती है, लोन माफ करती है, मुहल्ला साफ करती है, तो रोजगार क्यों नहीं देती? मैं कहता हूं सरकार जी! हमें सबकुछ दो... जिन लड़कों की शादी नहीं हो रही उनका विवाह भी कराओ... और कौन करेगा यह? आखिर जनता तुम्हे वोट क्यों देती है?


बिहार में इस आंदोलन का नेतृत्व ऐसा व्यक्ति कर रहा है जो आठवीं फेल है। मुझे पहली बार राजनीति पर श्रद्धा उपजी है। दुनिया के किसी देश में सरकार या निजी कम्पनियां किसी आठवीं फेल को रोजगार नहीं देती है, पर राजनीति में ऐसों को भी कुर्सी मिलती है। राजनीति जितनी दया और कहीं नहीं। आधुनिक समय में राजनीति ही करुणानिधान है।


कल आरा जिला में राजनैतिक बेरोजगारों ने मशाल जुलूस निकाला था। मैंने तस्वीरे देखीं, हजारों मशालें जल रही थी। मैं समझ गया कि मशाल जुलूस निकालने का आइडिया जरूर किसी बनिया का रहा होगा। बन्दे ने आपदा में अवसर ढूंढ लिया और बेरोजगारों को हजार मशाल बेंच कर लाख खड़ा कर लिया। सीधे सादे लड़कों की बेरोजगारी भी शातिरों के लिए रोजगार पैदा करती है।


मेरा एक व्यवसायी दोस्त है। फुसलाने में इतना तेज कि कुँआरे लड़कों से नाइटी बेंच देता है। मुझसे हमेशा कहता है,  जिस दिन राजनीति में आ गया, एक झटके में मंत्री बन जाऊंगा..." मैं जानता हूँ, जो बात बेचना सीख गया वह कुछ भी कर सकता है।


आजकल बोलने वालों की ही चांदी है। लोगों को लगता है कि केवल बोलने भर से सारा काम हो जाएगा, सो वे हर विषय पर बोलते हैं। कल मैंने देखा, एक अश्लील हिन्दी फिल्मों का निर्देशक रवि किशन से भोजपुरी फिल्मों की अश्लीलता पर प्रश्न पूछ रहा था। मजेदार यह भी है कि रवि किशन जीवन भर जो गन्दगी फैलाते रहे, आज उसी के विरोध में बोल रहे हैं। कितना अच्छा लगता है जब नीतीश जी शिक्षा पर बोलते हैं, लालू जी भ्रष्टाचार पर बोलते हैं, सनी लियोनी स्त्री सम्मान पर बोलती हैं, चेतन भगत साहित्य पर बोलते हैं या ढिंचक पूजा सङ्गीत पर बोलती हैं... बोलना ही परम सत्य है। यही सत्ता की चाभी है, जो बोलेगा वही खोलेगा।


मोदी जी के जन्मदिन को कुछ लोगों ने "बेरोजगार दिवस" के रूप में मनाया, तो इधर वालों ने चचा नेहरू के जन्मदिन को ठरकी दिवस मनाने की घोषणा कर दी है। मैं इन दोनों की निंदा करता हूँ।


कांग्रेस के लोग भाजपा वालों को "भक्त" कहते हैं, तो भाजपा वाले कांग्रेस वालों को चमचा कहते हैं। मुझे दोनों ही पसन्द नहीं। इसी तरह उत्तर प्रदेश के भाजपाई लड़कों ने माननीय अखिलेश जी को "टोंटी" कहा तो माननीय तो इन लड़कों को चिलमवाला कहा। मैं यहाँ भी दोनों से असहमत हूँ। हर मौखिक क्रांति के बाद हम जैसे लोग केवल निन्दा ही करते रहे जाते हैं। शायद इस देश में सभ्य समाज का व्यक्ति केवल निन्दा करने के लिए ही जन्मा है।


मुझे क्रांति का यह मौखिक स्वरूप समझ में नहीं आता। वैसे मुझे क्रांति ही समझ में नहीं आती। क्रांति सदैव एक भ्रांति रही है। आप एक भी क्रांति का उदाहरण नहीं दे सकते जो सफल हुई हो।


खैर। इस मौखिक क्रांति के नायकों में दो तरह के लोग हैं। एक वे जिनमे सचमुच दम है, और वे पिछले कुछ वर्षों की स्थितियों पर गुस्सा हैं। उनसे मैं यह कहूँगा कि आपको कोई सरकार नहीं रोक सकती। आप आज नहीं तो कल सरकार के मुंह में हाथ डाल कर अपना अधिकार ले लेंगे। दूसरे वे लोग हैं जो राजनैतिक क्रांतिकारी है। जो हर तीसरे दिन किसी न किसी पार्टी का झंडा ले कर क्रांति करते हैं। उनसे मुझे बस यही कहना है कि "दिनभर मुहल्ला में नल्ला घूमने वालों, हल्ला करने से दूतल्ला नहीं बनता। उसके लिए नीचे का पसीना ऊपर चढ़ाना पड़ता है।"
 
(सर्वेश तिवारी श्रीमुख)


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