और कंगना का ऑफिस तोड़ दिया गया
घर टूटने की पीड़ा वही समझ सकता है जिसने अपनी कमाई से घर बनवाया हो। पिता के नाम पर रोटी खाने वाले तुषार कपूर, हर्षवर्धन कपूर, और उद्धव ठाकरे जैसे लोग कभी समझ ही न सकेंगे कि अपनी मेहनत के बल पर घर खड़ा कैसे किया जाता है। अपने उत्पाती स्वभाव के कारण चिड़ियों का घोंसला उजाड़ देने वाले बन्दर नहीं समझते तिनकों के बिखर का दर्द, तिनकों के बिखरने की पीड़ा जानती है वह चिड़िया, जो अपने नन्हे वजूद के बावजूद एक एक तिनका आसमान तक पहुँचा एक अपना घोंसला गढ़ती है।
सत्ता को यह अधिकार नहीं कि वह अपने विरोधियों का घर ही उजाड़ दे। कंगना हो या कोई और, एक सभ्य समाज में किसी स्त्री का घर नहीं उजड़ना चाहिए। वैचारिक रूप से हम किसी के समर्थक हो सकते हैं, विरोधी हो सकते हैं, यह हमारा अधिकार है। कंगना के विचार यदि हमें पसन्द नहीं तो हम उसकी आलोचना करेंगे। पर उसका घर ही उजाड़ दिया जाय, यह क्या है? और यदि सत्ता अपने विरोधियों से इस तरह बदला लेने लगे तो फिर किस बात का लोकतंत्र? यह कैसे लोग हैं जो लोकतंत्र के मुँह में थूक रहे हैं? यह किस बन्दर के हाथ में उस्तरा थमा दिया गया है?
वस्तुतः उद्धव जितने क्रूर हैं उतने ही डरपोक भी हैं। कंगना राणावत ने उनके डर को सार्वजनिक कर दिया है। औरंगजेब जैसे सुल्तान की छाती पर चढ़ कर भगवा ध्वज लहराने वाले महान शिवाजी राजे के नाम पर बनी सेना का वर्तमान मुखिया एक अकेली लड़की से डर कर उसके घर उजाड़ने लगे तो सैनिकों को भी नया नायक ढूंढ लेना चाहिये। उद्धव महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भले हों, शिवसैनिक नहीं हैं यह स्पष्ट हो चुका है।
उद्धव की मंडली को केवल तोड़-फोड़ करना ही आता है। वे जब सत्ता के बाहर थे तब भी तोड़ फोड़ ही करते थे और जब सत्ता में आये तब भी तोड़ फोड़ ही करते हैं। कभी दक्षिण भारतीयों के विरुद्ध, तो कभी यूपी-बिहार वालों के विरुद्ध... उद्धव अपने पूरे राजनैतिक कैरियर में कभी सभ्य व्यक्ति की तरह दिखे ही नहीं। उन्होंने कभी किसी के साथ सहज व्यवहार किया ही नहीं। वे जब भाजपा के साथ थे तब भी अभद्रता ही करते थे, जब कांग्रेस के साथ हैं तब भी अभद्रता ही कर रहे हैं। ऐसे असहज और उत्पाती व्यक्ति को सत्ता मिलनी ही नहीं चाहिए। वैसे सच यह भी है कि महाराष्ट्र की जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए चुना ही नहीं था, उन्हें तो कांग्रेस ने कुर्सी के दाम पर खरीदा है। वे मुख्यमंत्री की तरह व्यवहार करें भी तो कैसे...
हिन्दी सिनेमा जगत में पसरे "देह-ड्रग्स और डॉन" के भ्रष्टाचार के विरुद्ध कंगना जिस तरह से मुखर हुई हैं, उससे उनका कद बढ़ा है। उद्धव मंडली उनपर जितना अत्याचार करेगी, कंगना का कद भी उतना ही बढ़ेगा। उद्धव समझ भी नहीं पा रहे हैं कि वे अपनी मूर्खता के कारण एक बहुत ही सशक्त प्रतिद्वंद्वी तैयार कर चुके। उद्धव और उनके पीछे के लोग जितना भी प्रयास कर लें, अब न कंगना रुकेगी न बॉलिवुड का भ्रष्टाचार छिपेगा। तनिक देर से ही सही, पर भारत अब सिनेमाई नायकों का सत्य जान चुका है। सलीम-जावेद जैसे एजेंडाबाज लेखक भी पहचाने जा चुके और एकता कपूर जैसे निर्माता भी... अब इस शतरंज के काले मोहरों के पिटने का समय आ गया है, इसे कोई नहीं रोक सकता।
(सर्वेश तिवारी श्रीमुख)