हमारे प्रिय देवी -देवता को प्रसन्न करने का एक और मार्ग है
चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज
महाराज जी भक्तों को बता रहें हैं की उन्होंने एक माता को लिख कर दिया:-
जिस देवी -देवता से प्रेम हो, घर पर रहकर उनका नाम जप
हमें से बहुत से लोग धार्मिक स्थलों की, तीर्थ स्थान इत्यादि की यात्रा करते हैं। अगर हम शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हैं और ऐसी यात्राएं करना हमें अच्छा लगता है -तो करना भी चाहिए।लेकिन जैसा महाराज जी यहाँ पर समझा रहे हैं कि अगर हमारा लक्ष्य अपने इष्ट के या जिस भी देवी -देवता जिनसे हम प्रेम करते हों, जिनमें हमारी भक्ति हो या जिन्हें हम मानते हैं -उनके समीप जाना है तो उसके लिए कहीं जाना आवश्यक नहीं है। ये तो घर -बैठे भी हो सकता है। क्योंकि वे हमारे अंदर ही बसते हैं !!
इसलिए सच्चे मन से उस देवी- देवता को याद करने से हमें उन्हें अपने समीप होने की अनुभूति होगी। समर्पण की भावना होनी चाहिए। और ये समर्पण प्रतिबंधात्मक वाला नहीं, conditional नहीं होना चाहिए जैसे की बुरे दिन में तो हम उन्हें निरंतर याद करेंगे लेकिन अच्छा समय आने पर कह नहीं सकते ……
पूर्ण समर्पण आवश्यक है !! ऐसा करने से हमें महाराज जी के आशीर्वाद भी मिलेगा।
वैसे सच्चे मन से आराधना करने का अर्थ ये भी होता है की हम अपने प्रिय देवी- देवता से जुड़े गुणों (जैसे दयालु, कृपालु, सत्यवादी, मधुर भाषी, आत्मसंयमी इत्यादि) पर चलें, चलने की ईमानदार कोशिश तो करें ही ….
ये इतना सरल नहीं है लेकिन संभव है - यदि अपने प्रिय देवी -देवता के समीप जाने की तृष्णा है। उनके दर्शन करना चाहते हैं।
महाराज जी आगे समझते हैं हमारे इष्ट, हमारे प्रिय देवी -देवता को प्रसन्न करने का एक और मार्ग है:
- तीर्थ -यात्रा पर जाना और,
- अहंकार रहित (मैंने किया की भावना के बिना !!) - निस्वार्थ भाव से वंचितों की सेवा करना, मदद करना, यथासंभव (जैसे की खिचड़ी बाँटना)
-एक जैसा ही है !!
महाराज जी खिचड़ी गरीबों को बांटने के बारे में बताते रहे हैं कि (पुराने समय में) इसकी धनराशि रु 125 में संभव था। अब शायद यह रू 500-550है। खिचड़ी में चौथाई (1/4) हिस्सा काले उड़द की दाल तथा दाल का तिगुना अर्थात 3/4 हिस्सा मोटा चावल होना चाहिए। गुरुदेव काले उड़द की दाल व मोटा चावल इसलिए कहते थे कि यह (उस समय) सस्ता होने से मात्रा में अधिक होगा,जिससे अधिकगरीब लोगों में खिचड़ी बटेगी। आधा -आधा किलो प्रति व्यक्ति को खिचड़ी देनी चाहिए। साथ में एक चुटकी भर नमक लकड़ी/ ईंधन के लिए रुपए भी अवश्य देना चाहिए।
अर्थात महाराज जी हमें अपने इष्ट के समीप जाने के, उनकी अनुभूति पाने के मार्ग दिखा रहे हैं …. जो बहुत कठिन भी नहीं है - यदि हमारी इच्छाशक्ति हो तो।
महाराज जी सबका भला करें।