इन्द्री में 1 ही अवगुण है, जिव्हा में हजार अवगुण हैं


चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज


इन्द्री में 1 ही अवगुण है, जिव्हा में अनेक हजार अवगुण हैं


संसार में आये हैं तो संसार को भोगना बुरा नहीं है, रस लेना भी चाहिए
लेकिन कितना ?
और कब तक ??
अपने जीवन में कष्ट और दुखों को कम से कम रखने के लिए इनकी सीमा बांधने में ही हमारा कल्याण है महाराज जी इसी सन्दर्भ में संभवतः भक्तों को समझा रहे हैं कि जिव्हा में अनेकों अवगुण हैं इसलिए हमें इस पर नियंत्रण करना चाहिए।


सर्वप्रथम तो अपने स्वार्थ के लिए जिव्हा से जो हम अपनों और परायों के किये ख़राब शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, अपशब्द कहकर उन्हें दुःख पहुंचाते हैं तो आगे -पीछे इसका फल मिलने पर हमें दुःख मिलना ही मिलना है, कभी -कभी तो बहुत अधिक -यदि हमने अपने अप - शब्दों से दूसरों को बहुत अधिक या बहुत बार दुःख पहुंचाया हो।


इसी सन्दर्भ में महाराज जी ने हमें ये भी समझाया है की जप -पाठ करने वाला व्यक्ति अर्थात भक्ति करने वाला व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए जिह्वा से दूसरों को दुखी ना करे नहीं तो उसके पूजा -पाठ, सत्संग, कीर्तन, कथा इत्यादि का लाभ उसे नहीं मिलता।


अपनी जिव्हा पर नियंत्रण रखना आसान नहीं होता है लेकिन संभव है, यदि हममें इच्छाशक्ति हो तो ...... विशेषकर महाराज जी के सच्चे भक्तों के लिए। इस बारे में जागरूक होने से मदद मिलगी। अर्थात करने के पहले यदि हम एक पल सोच लें कि जो हम कर रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं ?? और उसके फल के बारे में भी सोचें।


फिर हममें से वे लोग जो जिव्हा का उपयोग अधिक मात्रा में और अक्सर खूब मसालेदार, तला हुआ इत्यादि खाना खाने में करते हैं -वे आगे -पीछे अपने जीवन में कष्टों को निमंत्रण देते हैं। उनके शरीर में बीमारियां घर कर लेती हैं - कभी -कभी तो जानलेवा भी। ऐसे लोगों को अपना मन भक्ति में लगाने में भी परेशानी होती है।


महाराज ने इस सन्दर्भ में हमें ये भी समझाया है की जो ईश्वर की सच्ची भक्ति करना चाहते हैं उन्हें अच्छा खाने -पीने के मोह से ऊपर उठना पड़ता है।


इसी प्रकार से जिव्हा में अनेकों अवगुण हैं इसीलिए हमें सावधान रहना चाहिए। महाराज जी के भक्त अपने जीवन में कष्ट और दुःख कम करने के लिए ही सही, यदि अपनी जिव्हा पर नियंत्रण करने की ईमानदार कोशिश करते हैं तो विश्वास रखें, आपको महाराज जी का आशीर्वाद, प्रोत्साहन मिलेगा।


महाराज जी सबका भला करें।


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