जीवन का वास्तविक उद्देश्य कुटुम्ब भरण नहीं अपितु भगवद भक्ति है
आज का जीव अपने परम लक्ष्य को भूल बैठा है। वह सांसारिक सुखों को प्राप्त करना एवं अपने कुटुम्ब का भरण पोषण करने को ही अपने जीवन का प्रमुख लक्ष्य मानकर बैठा है।
इसकी पूर्ति के लिए वह अनुचित साधनों का भी प्रयोग करता है। परिवार की ममता के फेर में पड़कर न करने योग्य चोरी आदि कुकर्मों को भी कर बैठता है।
अपने कुटुम्ब के भरण पोषण में अपनी पूरी आयु गंवा देता है। स्मरण रहे जीवन का वास्तविक उद्देश्य कुटुम्ब भरण नहीं अपितु भगवद भक्ति है।