जीवन में धैर्य और सहनशीलता का अपना विशेष महत्व है
भगवान श्रीकृष्ण केवल वंशी बजाना ही नहीं जानते अपितु शंख बजाना भी जानते हैं। वंशी जहाँ अंतः आनंद की प्रतीक है। स्थिर जीवन की प्रतीक है, शांत और सुखी जीवन की प्रतीक है। वही दूसरी तरफ शंख एक ललकार, एक उद्घोष और एक विद्रोह है अन्याय, अत्याचार और अधर्म के विरूद्ध।
भगवान श्री कृष्ण ने अपने जीवन के प्रारंभ काल में केवल वंशी ही बजाई लेकिन उसके बाद का शेष जीवन ज्यादातर शंख बजाने में ही गुजारा। इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि जीवन में धैर्य और सहनशीलता का अपना विशेष महत्व है। लेकिन हमारा मौन, हमारा धैर्य और हमारी सहनशीलता भी यदि अधर्म को प्रश्रय दे रही हो तो वो स्वयं के साथ साथ सम्पूर्ण मानव जाति के लिए भी अति अनिष्टकारी और कष्टकारी बन जाती है।
भगवान कृष्ण का वंशीनाद मौन की तरफ संकेत करता है और शंखनाद विद्रोह की तरफ। विद्रोह अंधविश्वास के साथ, विद्रोह कुंठित परंपराओं के साथ, विद्रोह अत्याचारियों के खिलाफ, विद्रोह अन्यायियों और स्वार्थ में जकड़ी राजसत्ता के खिलाफ। स्वयं के सुख की वंशी अवश्य बजाओ लेकिन जरूरत पड़े तो धर्म रक्षा के लिए शंखनाद करने का साहस भी अपने भीतर उत्पन्न करो। केवल वंशी बजती तो श्रीकृष्ण और उसके आसपास के लोग ही सुखी हो पाते लेकिन शंखनाद हुआ तो धर्म रक्षा के साथ-साथ समस्त जगत और प्राणी मात्र के सुख का द्वार खुल पाया।