राही भी हम हैं और मंज़िल भी हम
अकेलापन इस संसार में सबसे बड़ी सज़ा है और एकांत इस संसार में सबसे बड़ा वरदान। ये दो समानार्थी दिखने वाले शब्दों के अर्थ में आकाश -पाताल का अंतर है। अकेलेपन में छटपटाहट है तो एकांत में आराम है। अकेलेपन में घबराहट है तो एकांत में शांति। जब तक हमारी नज़र केवल बाहर (भौतिक वस्तुएंं/ मोह की वृत्ति/ यश प्राप्तिि/ संसार ...) की ओर है तब तक हम अकेलापन महसूस करते हैं, और जैसे ही नज़र भीतर (आध्यात्मिक/ स्वयं को जानना/ उस परम आत्मा के लिए समर्पण ) की ओर मुड़ी तो एकांत अनुभव होने लगता है। ये जीवन और कुछ नहीं वस्तुतः अकेलेपन से एकांत की ओर एक यात्रा ही है। ऐसी यात्रा जिसमे रास्ता भी हम हैं, राही भी हम हैं और मंज़िल भी हम ही हैं...