जरा किसी को भी नहीं छोड़ती
यहाँ प्रत्येक वस्तु, पदार्थ और व्यक्ति एक ना एक दिन सबको जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त करना है। जरा किसी को भी नहीं छोड़ती।
लेकिन तृष्णा कभी वृद्धा नहीं होती सदैव जवान बनी रहती है और ना ही इसका कभी नाश होता है। घर बन जाये यह आवश्यकता है, अच्छा घर बने यह इच्छा है और एक से क्या होगा ? दो तीन घर होने चाहियें, बस इसी का नाम तृष्णा है।
तृष्णा कभी ख़त्म नहीं होती। विवेकवान बनो, विचारवान बनो, और सावधान होओ। खुद से ना मिटे तृष्णा तो कृष्ण से प्रार्थना करो। कृष्ण का आश्रय ही तृष्णा को ख़त्म कर सकता है।