नीके दिन जब आयेंगे, बनत न लगिहै बेर
चित्र - परमहंस राममंगलदास जी महाराज
सुप्रसिद्ध कवि रहीम के जीवन में भी एक समय ऐसा आया था कि वे राजकीय दरबार से अपदस्थ हो गये थे। कुछ चुगलख़ोरों ने जो उनकी प्रतिभा से ईर्ष्या करते थे,राजा से उल्टी -सीधी बात करके, उस महान कवि की छवि ऐसी खराब की उनकी दुर्दशा हो गयी।
रहीम कवि ने उनके ऊपर आए दुर्भाग्य के दिनों में लिखा था कि:
रहिमन चुप हवै बैठिये देख दिनन को फेर,
नीके दिन जब आयेंगे, बनत न लगिहै बेर।
तो फिर समय के उलट फेर पर जब अपना वश है ही नहीं, तो विवशता से समझौता करके, अच्छे दिनों की धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करके, परमात्मा से अपने गुरुदेव के माध्यम से प्रार्थना व प्रयासरत रहना ही अंत में सफलता का मार्ग प्रशस्त करता हैं। अपने गुरुदेव के माध्यम से, परमात्मा से प्रार्थना करते रहना ही मनुष्यों के हांथ में है।
सद्गुरु वचन वैद्य विश्वासा। जैसे वैद्य के वचन पर विश्वास करके,रोगी उसकी बतायी गयी दवाई खाकर निरोग हो जाता है, वैसे ही सदगुरु द्वारा बताये गये मार्ग (उनके उपदेश) पर चलने से हम सांसारिक प्राणी समस्याओं से मुक्त हो जाते हैं। सद्गुरु के लिए भाव तो दृढ़ करना हमारे ही हाथ में है। ऐसा होने से हमें महाराज जी के मार्गदर्शन की अनुभूति होने लगेगी।
महाराज जी सबका भला करें।