सुख में न वो फूलता है और दुख में वो न डूबता है
सच्चा वैष्णव दुख हो या सुख दोनों परिस्थिति में समान रहता है। सुख में न वो फूलता है और दुख में वो न डूबता है।
सुख में मनुष्य सरकती रेती जैसा बन जाता है, समय कब बीत गया पता ही न चला और दुख में मनुष्य के हृदय में कांटा जैसा चुभता है, लेकिन दोनों ही स्थिति में वैष्णव को स्थिर रहना चाहिए।
जीवन में कई बार बहुत सारी ऐसी बातें होती हैं जो हमे अच्छी नहीं लगती हैं लेकिन तब भी ये विश्वास रखना चाहिए कि भगवान जो करे सो भली करे। जिस प्रकार माँ बाप अपने सन्तान की रक्षा करते हैं उसी प्रकार अपने भक्तों की रक्षा भी भगवान करते हैं।