भक्ति से तब तक कोई लाभ नहीं जब तक उसमे सच्ची नियत की शक्ति शामिल ना हो


भजन की हजारों शाखायें हैं। केवल भजन से कुछ नहीं होता। ईमान ठीक हो, जीवों पर दया हो तब कुछ होता है। महाराज जी भक्तों को कितने सरल तरीके से ईश्वर भजन करने का मार्ग दिखा रहे हैं - ऐसा मार्ग जिससे निश्चित ही हमारी भक्ति, हमारे भाव उस परम-आत्मा के दरबार में पहुँचते हैं। बस इसके लिए हमारी इच्छा शक्ति होनी चाहिए।


अगर हमारा ईमान सच्चा है (फिर चाहे वो आजीविका चलाना हो या और कोई काम करना हो) और हम दूसरों के लिए दया भाव रखते हैं तो ऐसी भक्ति, ऐसा भजन किसी को दिखाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। ये बस हमारे और उस परम-आत्मा के बीच की बात है और वो हमें इसका फल भी अवश्य देता हैं।


महाराज जी सबका भला करें!


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