जीवन को सार्थक बनाने के लिए परमार्थ के साथ परस्वार्थ की भी आवश्यकता होती है
अपना जीवन को सार्थक बनाने के लिए महाराज जी हमें परमार्थ और परस्वार्थ के मार्ग पर चलने को समझाते रहे हैं। परमार्थ का लाभ मिलने के लिए सच्चे भाव आवश्यक हैं। परस्वार्थ में हमें बिना किसी स्वार्थ के, बिना किसी अपेक्षा के ज़रूरतमंदों की मदद करना चाहिए - जैसा भी हमसे बन पड़े (इस कृत के कोई गुण-गान किये बिना)।
दीपावली के पावन पर्व पर यदि महाराज जी के किसी भी भक्त के पास इच्छा,समय और साधन, ये तीनों हों तो वे अपने घर आस-पास के वंचितों को लाई -गुड़, खील-बताशे, चूरा-गट्टा या जो भी घर में हो उसे दूर से बांटे (2 मीटर की दूरी से और मास्क लगाकर)। जिसके लिए जितना संभव हो।
ज़रूरतमंद लोगों के चेहरे पर मुस्कान आएगी :-) दीपावली के पावन अवसर पर हमारा ये कर्म, महाराज जी के लिए हमारी उत्तम पूजा -अर्चना-भक्ति होगी। सभी भक्त और उनके परिवारों को दीपावली की शुभकामनाएं।