सच्चे भक्तों को दिखावटी भक्ति से बचना चाहिए
यहाँ पर महाराज जी ईश्वर की सच्ची भक्ति से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण बातों के बारे में संभवतः हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं:- 'कर्जा
लेकर करने से लिखा नहीं जाता, काट दिया जाता है। भगवान को दिखाऊ काम पसन्द
नहीं।' (दूसरों की) हंसी को न डरो, भजन न होगा। करम-भरम का नास (भजन में)
जुट जाने से होता है। भगवान के नाम में बड़ी शक्ति है। कोई करता नहीं।
अपने
बिना किसी मतलब के और बिना किसी अपेक्षा (अर्थात निस्वार्थ भाव) से किये
गए परोपकार के महत्त्व के बारे में महाराज जी समय -समय पर हमें समझाते रहे
हैं। इस सन्दर्भ में एक और महत्वपूर्ण बात उन्होंने कही है और वो ये है की
परोपकार हमेशा अपने सामर्थ के अनुसार करना है। जैसे
की वंचितों को खाना खिलाने की बात करें तो जिसका 100 लोगों को भोजन कराने
का सामर्थ हो (बिना छल- कपट- बेईमानी से कमाए गए पैसों से) वो वैसा करे, जो
10 को करा सके तो भी ठीक, जिसकी ईमानदारी की आमदनी उसे केवल 1 ही ज़रूरतमंद
की मदद करने की अनुमति दे वो वैसा करे लेकिन
ये/ ऐसा कृत बिना किसी क़र्ज़ या उधारी के होना चाहिए, नहीं तो, महाराज जी
कहते हैं की इन्हें पुण्य में नहीं गिना जाता है।
ईश्वर के दरबार में, ऐसे
कर्त करते समय, हमारे निस्वार्थ भाव का महत्त्व होता हैं। हममें
से कुछ लोगों को अपनी भक्ति का प्रदर्शन भाता है, फिर चाहे वो वेश-भूषा
के माध्यम से हो या फेसबुक इत्यादि पर हो। ये सब करके हमारा उद्देश्य कुछ
भी हो किन्तु ईश्वर की सच्ची भक्ति तो नहीं हो सकता है। सच्ची भक्ति में
प्रदर्शन करने की कोई भी आवश्यकता नहीं होती है। इस सन्दर्भ में महाराज जी
कहते हैं की भगवान को दिखाऊ काम पसंद नहीं है। स्वयं महाराज जी को भी ये सब
अच्छा नहीं लगता है। महाराज जी के सच्चे भक्तों को दिखावटी भक्ति से बचना
चाहिए।
महाराज जी आगे कहते हैं कि एक बार ईश्वर
भक्ति में हमारा मन लगना आरम्भ हो जाए तो फिर लोगों की चिंता करने की
आवश्यकता नहीं है। जो करने से हम आत्माओं को उस सर्वशक्तिशाली परम -आत्मा
के समीप होने की अनुभूति होने लगे वो करना चाहिए। लोग क्या कहेंगे के बारे
में बिलकुल ही नहीं सोचना चाहिए। फिर माया के वश में प्रायः हम ऐसे -ऐसे कर्म कर जाते हैं जिनसे फिर बाद में हमें लगता
है की ना करते तो अच्छा होता। माया अर्थात जो है उसके ना होने का और जो
नहीं है उसके होने का भ्रम - जैसा 26 अक्टूबर 2020 की पोस्ट में हमने
विस्तार से चर्चा की थी।
इसलिए महाराज जी हमें समझा रहे हैं करम- भरम से
ऊपर उठना, उनसे बचना केवल ईश्वर भजन में जुट जाने से ही संभव है, यदि हमारा
मन लग जाये, हमारे भाव सच्चे होने लगे तो भगवान
का नाम लेने में बहुत शक्ति होती है जैसे की जीवन में क्षणभंगुर (short
term) सुख की प्राप्ति के बजाय सतत (longterm/ perpetual) सुख प्राप्ति
संभव है परन्तु बहुत कम लोग होते हैं जिनके पास इस पथ पर चलने के लिए
इच्छाशक्ति, संकल्प और धैर्य होता है। इस मार्ग पर चलने की पहली सीढ़ी
महाराज जी के उपदेशों पर चलना है। यदि हम इस संदर्भ में धैर्यपूर्वक
प्रयत्न करेंगे तो महाराज जी का आशीर्वाद और प्रोत्साहन भी मिलेगा।
महाराज जी की कृपा सब भक्तों पर बनी रहे।