भगवान ही प्रेम बन कर के हमारे अंदर रमण करते हैं
आपने भगवान को प्राप्त नहीं किया है, भगवान ने आपको प्राप्त किया है। भगवान
ही प्रेम बन कर के आपके अंदर रमण कर रहे हैं। इसलिए आप प्रेम को अभिव्यक्त
कर रहे हो। प्रेम आपके अंदर, हमारे अंदर है ही कहाँ ? तो प्रेम के रूप में भगवान ही हमारे अंतर्मन में, आत्मा में रमण कर रहे हैं।
आपको चाहने वालो की संख्या बहुत अधिक नहीं है लेकिन आपको वही चाह
सकता है, जिसे आपने चाहा हो। तो हमने आपको प्राप्त नहीं किया है, बिना
विषयों को छोड़े कौन आप तक पहुंच सकता है। जब तक जीव विषयों को न छोड़े तब तक
आपके चरणारविन्द की प्राप्ति सम्भव ही नहीं है।