दूसरों के साथ वह व्यवहार मत करो जो तुम्हे अपने लिए पसंद नहीं
अपने जीवन को वेदमय बनाकर जियो, भेदमय बनाकर नहीं। वेद कहते हैं कि दूसरों के साथ वह व्यवहार मत करो जो तुम्हे अपने लिए पसंद ना हो। सबसे प्रेम करो और सबका सम्मान करना सीखो क्योंकि उस ईश्वर को आप अपनी आत्मा समझते हो तो वह ईश्वर सभी में बसता है।
अपने हित के लिए दूसरों को प्रताड़ित करना यही तो भेद दृष्टि है 'हरि व्यापक सर्वत्र समाना' यह वेद दृष्टि है। प्रार्थना करते वक्त तो हरि मेरे पास हैं मगर पाप करते वक्त बहुत दूर। यह भेद दृष्टि है विभीषण का जीवन वेदमार्गी और रावण का जीवन भेदमार्गी है। दोनों का परिणाम आपके सामने है अपने मार्ग को स्वयं चुन लेना।