हमें अपने मानसिक बल को बढ़ाने की आवश्यकता है

 
यह जरुरी नहीं कि जीवन में हमेशा प्रिय क्षण ही आएं। दूसरे लोगों का अनुकूल व्यवहार ही हमें प्राप्त हो। अपमान, शोक, वियोग, हानि, असफलता आदि तमाम स्थितियां आती रहती हैं और जाती भी रहती है दुनिया का कोई भी शरीर धारी जीव इन विविधताओं से बच नहीं पाता।
 
जरा सी बात पर परेशान हो जाना, निराश हो जाना, रोना, उत्तेजित हो जाना, क्रोधांध स्थिति में आकर ना कहने योग्य को कह जाना और ना करने योग्य को कर जाना, यह सब मनुष्य की आंतरिक कमजोरी, दुर्बलता, जड़ता के लक्षण हैं। हमें अपने मानसिक बल को बढ़ाने की आवश्यकता है। कठिन से कठिन विकट स्थिति में विवेक पूर्वक और धैर्यपूर्वक निर्णय लेना है।
 
उत्तेजना और क्रोध में कहा गया शब्द और किया गया कर्म स्थिति को और बिगाड़ देता है। इसलिए मौन और मुस्कुराहट को अपना आभूषण बनायें। संसार का चक्र ऐसे ही चलता रहेगा। मुस्कुराकर हर क्षण को स्वीकार करो।

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