सीस दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान,
सीस दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।
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ये हमारा मिटटी से बना हुआ शरीर, मृत्यु पश्चात मिटटी में ही मिल जाएगा। वास्तव में तो जिस पल हम (अर्थात आत्मा) इस शरीर से प्रस्थान करते हैं (मृत्यु पश्चात), उसके तुरंत बाद ही शरीर मिटटी कहलाने लगता है।
कबीर दास जी कहते हैं इस मिटटी के शरीर में काम, मोह, लोभ और अहंकार- क्रोध रूपी विष भरा हुआ है, जिसके वश में हम ना केवल दूसरों का बल्कि स्वयं अपना जीवन दुखद बनाते हैं, अपने -आप को पीड़ा देते हैं क्योंकि हमारे प्रत्येक कर्म का फल तो हमें मिलता ही मिलता है।
ऐसे में हमारे महाराज जी जैसे सिद्ध गुरु का सानिध्य, गुरु का मार्गदर्शन अमृत की खान की तरह है जो हमें विकार रूपी विष से बचाने की क्षमता रखता है - यदि हम स्वयं ऐसा चाहते हैं तो … अर्थात हम स्वयं इसके लिए प्रयत्न करते हैं तो (ये करना हमें ही होगा, हमारे लिए कोई और नहीं कर सकता- गुरु भी नहीं)।
क्योंकि गुरु के उपदेशों पर चलना इतना सरल तो होता नहीं है …….. वैसे इतना कठिन भी नहीं होता, विशेषकर जिस तरह के हमारे महाराज जी के उपदेश हैं -यदि हममें इसके लिए इच्छाशक्ति और धैर्य हो तो ……
तो कबीर दास जी संभवतः यहाँ पर कह रहे हैं की सिद्ध गुरु की सच्चे भाव से भक्ति करने के लिए, उनके दिखाए मार्ग पर चलने के लिए यदि हमें अपने जीवन को भी त्यागना पड़े (अर्थात गुरु के ज्ञान पर, उपदेशों पर चलने में हमें यदि बहुत कठिनाइयों का सामना भी करना पड़े) - तो भी यह सौदा सस्ता ही है, क्योंकि गुरु से प्राप्त मार्गदर्शन की मदद से हम ना केवल अपने वर्तमान जन्म में दुखों का सामना कम करना पड़ेगा बल्कि हमारा अगला जन्म भी सुखी होगा अर्थात हम अपने कई जन्मों को सार्थक बना पाएंगे।
ये हमारा सौभाग्य ही है की इस जन्म में हमें ये अमृत के खान जैसा गुरु महाराज जी का साथ मिला है। अब ये हमारे ऊपर है कि हम किस हद तक इसका लाभ उठा पाते हैं अर्थात महाराज जी के उपदेशों को अपने जीवन में कितना उतार पाते हैं और विकार रूपी हमारे शरीर के विष पर अंकुश लगा पाते हैं। जितनी अधिक कोशिश करेंगे उतना ही हमारे जीवन में शांति आएगी। जीवन सफल होगा। जीवन में आनंद होगा।
महाराज जी की कृपा सब भक्तों पर बनी रहे।