प्रभु की भक्ति ही वो रामबाण महौषधि है, जो हमारी उस दृष्टि को बदल देती है
प्रभु की भक्ति ही वो रामबाण महौषधि है, जो हमारी उस दृष्टि को बदल देती है, जो हमें अभाव तो अभाव, प्रभाव में भी दुखी कर देती है। दुखों का जो मुख्य कारण है वो है हमारि अतृप्ति, हमारी नित नवीन आकांक्षाएं अथवा तो हमारी अनगिनत इच्छाएं।
केवल काम ही नहीं अपितु काम के जो भी सहायक हैं अथवा तो जो-जो हमारे आंतरिक विकार हैं, काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह और अहंकार, भक्ति उन सभी को निर्मूल करके जीवन को एक नवीन दृष्टि प्रदान करती है, जो हमें अभाव में भी आनंद प्रदान करती है।
भजन के बिना अथवा प्रभु भक्ति के बिना जीवन में क्लेशों का अंत नहीं हो सकता। अभाव में भी मुस्कुराने की कला सीखनी है, तो भक्ति की शरण लेनी ही पड़ेगी।