मैं कौन हूँ ?

"अपने आप से प्रश्न करो- 'कोSहम्' मैं कौन हूँ ? हों सकता है तुम्हें उतर मिलें, मैं किसी का पुत्र हूँ, पिता हूँ, पत्नी हूँ, बहन हूँ अथवा माँ हूँ। यह उत्तर मिलने पर साधना मार्ग पर और दृढ़ता से कदम बढ़ाओ। साधु, गुरु चरणों में और प्रीति बढ़ाओ। फिर पुनः स्वयं से यही प्रश्न करो। जब तुम्हें एक ही उतर मिले- 'शिष्योSहम्'- मैं शिष्य हूँ, तभी समझना की तुमने गुरु ज्ञान को वास्तव में धारण किया है।"

सांसारिक रिश्ते-नाते की एक सीमा होती है लेकिन गुरु के प्रति रिश्ता असीम होती है। संसार के रिश्ते-नाते की सीमा अगर लांघते है कहने का भाव अगर मोह अधिक होता है तो फिर वही पतन का कारण बन जाता है और इतिहास में उदाहरण है दुर्योधन के प्रति प्रेम जो धृतराष्ट्र का था वो सीमा से परे था जिससे उसके पुत्र की हर गलती पर वो अनदेखा किए जा रहा था।

प्रभु राम भी अपने पिता से प्रेम करते थे लेकिन एक सीमा तक क्योंकि वे जानते थे कि अगर मोह अधिक हुआ तो जिस कार्य के लिए धरा पर अवतार लिए है वो कार्य पूरा नहीं हो पाएगा। यही बात प्रभु श्रीकृष्ण के थे, वे मोह के किसी जाल में नहीं फँसे हर जाल को तोड़ते हुए निकले और स्वयं सारथी बनकर अर्जुन के भीतर जो मोह था, जो धर्मयुद्ध में रुकावट बन रहा था उसे खत्म किए थे। भगवन ब्रह्मज्ञान प्रदान कर और जब मोह टूटा अर्जुन का तभी प्रभु श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम-भाव, वो शक्ति को पहचान पाया जो उसके भीतर ही था।

Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

जेवर एयरपोर्ट बदल देगा यूपी का परिदृश्य

भाजपा का आचरण और प्रकृति दंगाई किस्म की है- अखिलेश यादव