श्रीराम का चरित्र नरत्व के लिए तेजोमय दीप स्तंभ है


धर्म और कर्म की सम्पूर्ण समन्वयता:-

श्री रामचंद्र जी की सभी चेष्टाएं धर्म, ज्ञान, नीति, शिक्षा, गुण, प्रभाव, तत्व एवं रहस्य से भरी हुई हैं उनका व्यवहार देवता, ऋषि, मुनि, मनुष्य, पक्षी, पशु आदि सभी के साथ ही प्रशंसनीय, अलौकिक और अतुलनीय है भगवान श्री राम की कोई भी चेष्टा ऐसी नहीं जो कल्याणकारी न हो श्री राम ने ईश्वर होते हुए भी मानव का रूप रचकर मानव जाति को मानवता का जो पाठ पढ़ाया, मानवता का जो उत्कृष्ट आदर्श स्थापित किया, धर्म और कर्म की पारस्परिक समन्वयता की जो स्थापना की है जन्म-जन्मांतर, अनादि काल तक पूज्य और अनुकरणीय है। उपनिषदों में राम नाम, ॐ अथवा ब्रह्म अक्षर हैं व इसका तात्पर्य तत्वमसि महावाक्य है-

'र' का अर्थ तत्‌ (परमात्मा) है 'म' का अर्थ त्वम्‌ (जीवात्मा) है तथा आ की मात्रा (ा) असि की द्योतक है। सनातन स्तम्भ में राम नाम उसी प्रकार अनुस्यूत है जिस प्रकार दुग्ध में धवलता।मनुष्य के जीवन में आने वाले सभी संबंधों को पूर्ण तथा उत्तम रूप से निभाने की शिक्षा देने वाले प्रभु श्री रामचन्द्रजी के समान दूसरा कोई चरित्र नहीं है देवता, गंधर्व, ऋषि, मुनि और मनुष्यों की तो बात ही क्या-जाम्बवान, सुग्रीव, हनुमान आदि रीछ-वानर, जटायु आदि पक्षी तथा विभीषण आदि राक्षसों के साथ भी उनका ऐसा दयापूर्ण प्रेमयुक्त और त्यागमय व्यवहार हुआ है कि उसे स्मरण करने से ही रोमांच हो आता है। आदि कवि वाल्मीकि ने उनके संबंध में कहा है कि वे गाम्भीर्य में समुद्र के समान हैं।

समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्यण हिमवानिव। श्रीराम का चरित्र नरत्व के लिए तेजोमय दीप स्तंभ है वस्तुतः भगवान राम मर्यादा के परमादर्श के रूप में प्रतिष्ठित हैं श्रीराम सदैव कर्तव्यनिष्ठा के प्रति आस्थावान रहे हैं उन्होंने कभी भी लोक-मर्यादा के प्रति दौर्बल्य प्रकट नहीं होने दिया हम राम जी के जीवन पर दृष्टि डालें तो उसमें कहीं भी अपूर्णता दृष्टिगोचर नहीं होती जिस समय जैसा कार्य करना चाहिए राम ने उस समय वैसा ही किया श्री राम रीति, नीति, प्रीति तथा भीति सभी जानते हैं श्री राम परिपूर्ण हैं, आदर्श हैं श्री राम ने नियम और त्याग का एक आदर्श स्थापित किया है।
 
इस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में श्रीराम सर्वत्र व्याप्त हैं कहा गया है-

एक राम दशरथ का बेटा,
एक राम घट-घट में लेटा।
एक राम का सकल पसारा,
एक राम है सबसे न्यारा॥

उस उक्ति के द्वारा श्रीराम के चार रूप दर्शाए गए हैं मर्यादा पुरुषोत्तम दशरथ-नंदन, अंतर्यामी, सौपाधिक ईश्वर तथा निर्विशेष ब्रह्म पर इन सबमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र सर्वाधिक पूजनीय है। मनुष्य के जीवन में कब किस पथ पर कैसा आचरण और व्यवहारिता होनी चाहिए इसका सम्पूर्ण ज्ञान स्वयं उन्होंने अपने इस अवतरण में मानव स्वरूप में प्रस्तुत किया है, जो सदैव वन्दनीय है और अनुकरणीय रहेगा अनादि काल तक।

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