हम समय, स्वांसा और शरीर को अपना मानते हैं - यही भूल है
महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहे हैं कि लोग रोज मरते और पैदा होते देखकर भी हम समय, स्वांसा और शरीर को अपना मानते हैं- यही भूल है उसके दिमाग में यह बात घुसी है कि हम नहीं मरेंगे। वह मौत और भगवान को भूला है।
शरीर
जैसा की हमें ज्ञात है, हमारा शरीर वैसे है तो पांच तत्वों का बना हुआ लेकिन रचना भगवान की ही है बोलचाल की भाषा में कहें तो ये शरीर मिटटी का बना हुआ है, मृत्यु पश्चात् -मिटटी कहलाता है और मिटटी में ही वापस मिल जाता है ये शरीर उस सर्वशक्तिशाली ईश्वर की अमानत है पर इसके रख-रखाव का दायित्व हमारा है।
इस जीवन में हमारा रोग -बीमारियों से बच पाना तो संभव नहीं है। ये रोग प्रायः हमें, हमारे प्रारब्ध में भी मिलते हैं अर्थात पूर्व में किये गए हमारे बुरे कर्मों का फल जो ईश्वर हमें देते हैं (ये बात याद रखने वाली है!!) हाँ ये है कि हमारे अच्छे कर्म, हमारा खान -पान, स्वास्थ के लिए हमारी जागरूकता और हमारी प्राथमिकता, ये परिभाषित करने में सक्षम हैं की हम जीवन में कितना स्वस्थ रहते हैं, स्वास्थ से सम्बंधित हमारे जीवन में कितनी तकलीफ और कितना आराम होगा खान-पान के बारे में भी महाराज जी ने हमारा मार्गदर्शन किया जिसकी चर्चा हम समय -समय इस पटल पर करते रहते हैं।
ईश्वर के दिए हुए इस शरीर को अपना समझना हमारी भूल होगी। और शरीर के साथ मिले सम्बन्ध मृत्यु के पश्चात् हमारे साथ नहीं जाएंगे इसलिए इन संबंधों के साथ से मोह की वृत्ति, कभी -कभी हमारे लिए बहुत पीड़ादायक हो सकती है ऐसे सम्बन्ध जिनमे पति, पत्नी, भाई- बहिन और विशेषकर संतान इत्यादि आते हैं। इन संबंधों के लिए अपेक्षित कर्म करना हमारा कर्त्तव्य है, हमारा धर्म है। उदहारण के लिए संतान को पालना -पोसना, शिक्षा, अच्छे संस्कार इत्यादि देना -ये हमारे माँ -बाप ने हमारे साथ किया था और हम अपनी संतान के साथ कर रहे हैं पर संतान से चिपकना, उनके भविष्य के लिए चिंताग्रस्त रहना इसकी आवश्यकता नहीं है।
हमारे ये सम्बन्ध, अपना -अपना भाग्य लेकर पैदा हुए हैं, उसी का खाते -पीते हैं हमारी ही तरह ये आत्माएं भी उस परम आत्मा का ही अंश हैं-हमारी ही तरह इनके कल्याण का दायित्व भी उन्ही का है। इसलिए इस शरीर के संबंधों के साथ मोह की वृत्ति करते समय हम कहीं ना कहीं परमात्मा के अस्तित्व को भूल जाने की भूल कर बैठते है तदनुसार अपने आप को ही पीड़ा देते हैं हाँ माता- पिता की सेवा का अवसर तो भाग्यशाली लोगों को ही मिलता है क्योंकि ऐसे कर्म करने से बहुत पुण्य अर्जित किया जा सकता है
जिन्हें ये बातें, जितनी समझ में आ जाए और फिर उन पर जितना चल सकें उतना ही उनके जीवन में सुख- शांति होगी।
समय
हमारा वर्तमान समय अच्छा है या बुरा है, वैसे तो हमारे पूर्व कर्मों का फल है लेकिन है प्रभु की मर्ज़ी से, और एक दिन इसका बीतना तय भी है उस सर्वशक्तिशाली परत्मात्मा के बनाए इस सम्पूर्ण ब्रम्हांड में हमारे जीवन के लिए दो ही अटल सत्य हैं –एक तो परमात्मा द्वारा निर्धारित दिन को हमारी मृत्यु होना निश्चित है और दूसरा हमारे जीवन में अच्छे और बुरे समय का बदलाव होते रहना
यदि हमारा वर्तमान समय अच्छा चल रहा है और हम सांसारिक सुखों का रस ले रहे हैं तो हमें ईश्वर का सदैव कृतज्ञ रहना है की उसने हमारे अच्छे कर्मों के फलस्वरूप ऐसा समय हमें दिखाया है सब कुछ उसी का दिया हुआ है उसी की लीला है इसलिए हमें विनम्र रहने का प्रयत्न करते रहना है -सबके साथ स्वार्थवश अपने -परायों को शारीरिक/मानसिक दुःख नहीं देना है, उनकी आँखों में आंसू ना लाने का प्रयत्न करना है, विशेषकर जवानी में जब हममें से कुछ लोग जैसे बेलगाम घोड़े पर सवार होते हैं।
ऐसे बुरे कर्मों के फल आगे पीछे हमें परमात्मा देगा ही देगा ये निश्चित है ऐसा समय हमें पीड़ा दे सकता है -कभी कभी बहुत और ऐसे समय में हमारा पूजा -पाठ, कीर्तन, सत्संग कुछ काम नहीं आता है ऐसे समय में दूसरों की विशेषकर परायों की मदद करनी चाहिए - बिना किसी अपेक्षा और प्रदर्शन के फिर ऐसे कर्मों का फल हमारे लिए सुख और समृद्धि लाएगा इसलिए ऐसा मान लेना की जिन चीज़ों से, जिन लोगों से हमें सुख मिल रहा है वो हमारे हैं, ये समय हमारा है और बदलेगा नहीं - ये हमारी बड़ी भूल होगी।
यदि हमारा बुरा समय चल रहा है तो धैर्य रखें और अपने प्रयत्न/कर्म करते रहें ऐसी स्थिति से निकलने के लिए ईश्वर द्वारा निर्धारित सही समय आने पर ये समय बदल जाएगा ये भी निश्चित है सब ठीक हो जायेगा। जैसा हम चर्चा करते रहे हैं, कठिन समय में हमको धैर्य, महाराज जी के प्रति हमारे भाव प्रदान करते हैं जिसके जैसे भाव होंगे, जैसी आस्था होगी वो वैसे ही महाराज जी को अपने समीप पाएगा आज भी !! ये मान के चलें की जो हो रहा है वो महाराज जी की मर्ज़ी से हो रहा है इसलिए अंततः हमारा बुरा तो हो ही नहीं सकता है इस प्रक्रिया में अंततः हमारा कल्याण भी निहित है और ईश्वर तो बहुत दयालु हैं, वे किसी का बुरा तो चाहते ही नहीं अतः समय पर हमारा कोई ज़ोर नहीं है क्योंकि हमारा समय तो पूर्णतः उस सर्वशक्तिशाली परमात्मा द्वारा नियंत्रित है।
सांस
वाकई में हम लोग अपने आस- पास अपने- परायों की मृत्यु होती देखते ही रहते हैं परन्तु कुछ ही लोगों को इस बात का एहसास होता है की हमारा नंबर कभी भी आ सकता है (जैसा ईश्वर ने तय किया होगा) और फिर अच्छे -बुरे कर्म करते रहते हैं, प्रायः बुरे अधिक क्योंकि हममें से अधिकतर लोग बिना सोचे -समझे कर्म करते हैं की जो हम कर रहे हैं., करने जा रहे हैं उनका फल क्या होगा ? और कर्मों का फल परमात्मा हमें निश्चित ही देता है।
हमारे अधिकतर कर्मों का फल परमात्मा हमें इसी जन्म में दे देते हैं हमारे पापों का, बुरे कर्मों का फल यदि बुढ़ापे में ईश्वर ने देना तय किया हो, जब हमारे अंग ठीक से काम नहीं करते हैं और अपने छोटे -छोटे काम के लिए हम दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं - तो ऐसे में जीवन नर्क समान हो जाता है ऐसे समय से बचने में हमारी मदद ना भगवान और ना महाराज जी करते हैं ….. क्योंकि अपने प्रारब्ध तो सभी को काटने होते हैं ऐसी परिस्थिति आने से बचने के लिए महाराज जी के भक्तों को जीवन में अच्छे -बुरे काम करने के पहले ये सोचना अच्छा होगा की जो हम कर रहे हैं या करने जा रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं ?? और यदि वो काम महाराज जी के उपदेशों के विपरीत है तो बेहतर है ना करें।
वैसे ये भी देखा गया है बहुत से लोगों को मृत्यु का भय होता है ये भली भांति जानते हुए की एक ना एक दिन हमारी सांसे बंद होना तय है ये दिन कब आएगा और किस कारण से हमारी मृत्यु होगी (बीमारी, दुर्घटना, बुढ़ापा इत्यादि) ये तो परमात्मा को ही मालूम है क्योंकि उसने ही इसका निर्णय लिया है जैसा ऊपर कहा गया है। लेकिन हमारे जीवन में ऐसा होना केवल एक ही बार है तो फिर भय क्यों ?? इसलिए मृत्यु से भयभीत नहीं होना है, मृत्यु के बारे में भूलना भी नहीं है जैसा महाराज जी हमें समझा रहे हैं।
जिन लोगों की मृत्यु शांतिपूर्ण ढंग से होती है, अपने और अपनों को कम से कम कष्ट देकर -वे भाग्यशाली होते हैं। उन्होंने निश्चित ही अपने जीवन में अच्छे कर्म किये होते हैं
जीवन में सुख और शांति के लिए अपने सामर्थ के अनुसार और निस्वार्थ से वंचितों की मदद करते हुए ईश्वर को (या जिस भी देवा -देवता को हम मानते हों) याद करते रहना है, इस बात को बिना भूले की हमारा समय, हमारी सांस और हमारा शरीर ये सब ईश्वर का ही है।
महाराज जी कृपा सब भक्तों पर बनी रहे।