मोहब्बत के शहर में जिंदा है इंसानियत
लखनऊ। नवाबों के शहर लखनऊ की तहजीब शुरु से ही गंगा–जमुनी रही है। ये एक एसा शहर है जहां सैकड़ो साल से हिंदू और मुसलमान दोनों एक साथ मिलजुलकर रहते आये है। ईद के रोज अगर हिंदुओं के घर में सेंवई पकती है तो होली के दिन मुसलमान जमकर रंग खेलते है। नवाबों के दौर में यहां ज़िंदगी की एक अलग नजाकत हुआ करती थी। अब्दुल हमीद शरर ने अपनी किताब ‘गुजश्तह लखनऊ’ में यहां कि पतंगबाजी,बटेरबाजी और शतरंजबाजी आदि के जानदार चित्र खींचे है।
कहते हैं कि रिवायतें कभी मरती नहीं। वक्त बदलता है। चीजे बदलती है लेकिन रिवायते अपने मूल रुप में जिंदा रहती है। लखनऊ की जो मोहब्बत की रिवायत रही है जिसकी तस्दीक शहर के बीचोंबीच बह रही गोमती की लहरे करती है, उसने आज करोना महामारी के मुश्किल दौर में एक बार फिर खुद को साबित कर दिया है। शहर के लालबाग इलाके में स्थित जामा मस्जिद इन दिनों के मुश्किल के वक्त में उम्मीदों की एक किरण के रुप में उभरकर सामने आयी है।मुसलमान भाईयों ने आपस में चंदा करके आक्सीजन के सिलेंडर, मास्क और सैनिटाइजर जैसी चीज़े इकट्ठा की है।खुदा के इस घर में जहां इबादत का सिलसिला जारी रहता है वहां आज ज़रुरतमंद लोगों को आक्सीजन जैसी चीजे मुफ्त में मुहैया करायी जा रही है।
मस्जिद की इंतजामिया कमेंटी के सदर जनाब जुननू नौमानी से जब मैंने मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि ईश्वर की कृपा से ही वो यह सब काम कर पा रहे हैं।उन्होंने कहा कि आम लोगों की मदद से सिलेंडर का इंतजाम किया जाता है और जरुरतमंद लोगों को उसे बिना किसी पैसे के दे दिया जाता है।ज़रुरत के बाद लोग सिलेंडर को वापस कर जाते हैं।अगर कोई खाली सिलेंडर लेकर आता है तो उसे उसके बदले में भरा सिलेंडर मुफ्त में दे दिया जाता है।मस्जिद इंतजामिया कमेटी के ही जनाब अकील सिद्दकी ने बताया कि ईस्लाम कहता है कि लोगों कि खिदमत ही अल्लाह की असली इबादत होती है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां से हिंदू मुसलमान सभी बिना किसी भेदभाव के मदद लेने आते है।
उन्होंने बताया कि इसी से सम्बन्धित एक औऱ मस्जिद कपूरथला में है जहां से भी लोंगों को इमदाद पहुंचायी जा रही है। जिस वक्त मैं मस्जिद में था मेरी मुलाकात वहां कुछ लोगों से हुई जो इमदाद के लिये आये थे इन्हीं में से एक है आलोक जोशी जो लखनऊ के ही महानगर इलाके के रहने वाले है। श्री जोशी बताते हैं कि उनके घर में एक सदस्य के बीमार होने के कारण उन्हें आक्सीजन की ज़रुरत थी यहां से वे आक्सीजन का सिलेंडर ले जा रह हैं।निरालानगर के वाई पी सिंह ने भी सिलेंडर की मदद हासिल की ।उन्होंने कहा कि जहां एक ओर कुछ लोग आक्सीजन की कालाबाजारी में लगे है वहीं इस मस्जिद से लोगों को बगैर किसी पैसे के मदद मुहैया करायी जा रही है।
खंदारी बाजार के प्रमोद शर्मा ने भी अपने पड़ोस में रहने वाली एक बीमार महिला के लिए यहां से सिलेंडर हासिल किया।जिस वक्त मैं मस्जिद से खबर और फोटोग्राफी करके निकल रहा था।अचानक मुझे अल्लामा इकबाल का एक शेर याद आया—कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी-सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा।आज भी हिंदुस्तान की तहजीबों तमद्दुन में मोहब्बत का जो रंग नमूदार होता है वह शायद दुनिया में कहीं और नहीं है।