हमारा वर्तमान जैसा भी है, वो हमारे पूर्व कर्मों का ही फल है
प्रश्न: आप धीरज दीजिये नहीं तो बुरा हाल होगा
उत्तर: (महाराज जी का)लागि जाव तब कृपा घुसरै सब बात पर चल जाओ, मन उधर लगने लगे हमारी आत्मा खुश होकर तुम्हारे अन्दर प्रवेश कर जाये।
हमारा वर्तमान जैसा भी है, वो हमारे पूर्व कर्मों का ही फल है और क्षणिक है। समय के इस बदलाव का बीतना तय है -ये परम सत्य हमारे महाराज जी हमें निरंतर याद दिलाते रहे हैं।
हमारा वर्तमान यदि संघर्ष में बीत रहा है तो इसका अर्थ है की ये हम अपने पूर्व में किये हुए बुरे कर्मों का फल पा रहे हैं। अब इसका सामना तो हमें करना ही पड़ेगा। इससे हमें कोई बचा नहीं सकता, ना महाराज जी और ना स्वयं सर्वशक्तिशाली ईश्वर जिसने हमें ये प्रारब्ध अर्थात हमारे पूर्व कर्मों का फल हमें दिया है।
समय के इस बदलाव का हम कैसे सामना कर सकते हैं इसकी चर्चा हमने विस्तार से एक सप्ताह पूर्व यानि 2 मई 2021 के पोस्ट में की थी। इच्छुक भक्त उसे फिर पढ़ सकते हैं। मनन करना तो और भी लाभदायक होगा।
अब ऐसा प्रश्न, ऐसी प्रार्थना कि आप धीरज दीजिये नहीं तो बुरा हाल होगा, इस पर महाराज जी का उत्तर/उपदेश संभवतः तब भी वही था जब महाराज जी मानव शरीर में भक्तों के साथ थे और आज भी जब वे आध्यात्मिक रूप अपने सच्चे भक्तों के साथ जुड़े हैं और उनका मार्गदर्शन भी कर रहे हैं। स्वाभाविक रूप से ऐसा प्रश्न कोई भक्त महाराज जी से तभी करेगा/करेगी जब वे या उनके अपने मुसीबत में होंगें।
महाराज जी ने कितने सरल तरीके से यहाँ पर समझाया है कि जब उस भक्त का मन उस सर्व-शक्तिशाली ईश्वर और महाराज जी की भक्ति में लगने लगेगा तो उस भक्त को उनकी कृपा दृष्टि की अनुभूति स्वतः होने लगेगी। मुसीबत का सामना करने का धैर्य आ जाएगा। प्रश्नों के उत्तर मिलने आरम्भ हो जाएंगे जैसे की ये जो हमारे साथ हो रहा है -ये क्यों हो रहा है इत्यादि। जो भक्त महाराज जी की सच्चे मन से भक्ति करते हैं ऐसे भक्तों के प्रारब्ध काटते समय महाराज जी उनके साथ होते हैं - ये निश्चित है। सब हमारे भाव का खेल है।
और मन लगाने के मार्ग में सबसे महत्वपूर्ण कदम होता है महाराज के उपदेश पर चलना। ये इतना कठिन भी नहीं होता यदि हमारे पास इसके लिए इच्छाशक्ति और धैर्य हो। उसके बाद तो फिर प्रयत्न ही करना है - ईमानदारी के साथ - अपने आप से। हमें ये बात अपने आप को याद दिलाते रहना है कि ये प्रयत्न हम अपने सुख के लिए, अपनी ही शांति के लिए कर रहे हैं या करेंगे। इसलिए इसमें किसी भी प्रकार का प्रदर्शन नहीं होना चाहिए। और इसे कभी भी आरम्भ कर सकते हैं - जब जागो तब सवेरा।
महाराज जी के उपदेश पर चलने से हमारा मन उनकी भक्ति में अपने- आप लगने लगेगा जैसा ऊपर कहा गया है। सब भाव का खेल है। और जब ऐसा होने लगेगा तो गुरु और शिष्य के बीच की दूरी कम हो जाएगी। और ऐसी स्थिति का वर्णन कबीरदास जी ने कितना अच्छा किया है:
जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाय।
प्रेम गली अति साँकरी, ता मे दो न समाय॥
महाराज जी की कृपा सब भक्तों पर बनी रहे।