पुरुषार्थ से सफलता के द्वार निश्चित रूप से खुल जाते हैं
पुरूषार्थ से असंभव भी संभव हो जाता है ये बात जितनी सत्य
है कि पुरुषार्थ से सफलता के द्वार निश्चित रूप से खुलते हैं। ये बात भी
उतनी ही सत्य कि पुरूषार्थ और सफलता के बीच सदैव अनेक तरह के विघ्न और
बाधाएं भी अवश्यमेव उपस्थित हो जाती हैं। जीवन में विघ्न और बाधाएं कठोर से कठोर संकल्प को भी छिन्न-भिन्न करके
रख देती हैं।
इस स्थिति में सबसे ज्यादा जिस बात की आवश्यकता होती है, वो
है, धैर्य। धैर्य आशा की वो किरण है, जो हमें प्रतिकूल से भी प्रतिकूल
परिस्थिति में निरंतरता बनाये रखना सिखाती है। इसलिए जीवन में मनोनुकूल परिणामों के लिए पुरुषार्थ जितना जरूरी
है, साथ ही साथ धैर्य भी उतना ही आवश्यक। उद्देश्य पवित्र हो, पुरुषार्थ
पूर्ण हो और धैर्य असीम हो तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है।