भक्तों के अंतःकरण में विराजते हैं भगवान
भक्तों के अंतःकरण में भगवान विराजते हैं और समस्त प्राणी
मात्र के अंतःकरण में जो भगवान विराजते हैं, उन दोनों में कितना अंतर है ?
हम सब के अंतःकरण में जो भगवान विराजते हैं वे उदासीन रूप से विराजते हैं।
केवल साक्षी बनकर विराजते हैं। वे हमारे सुख दुख में भागीदार नहीं होते हैं और ना ही हमें
सत्प्रेरणा प्रदान करते हैं क्योंकि वह हमारे हृदय में उदासीन होकर विराज
रहे होते हैं।
भक्तों के हृदय में भगवान विराजते हैं, वे प्रेमास्पद स्वरूप
में विराजते हैं। अपने प्रिय के लिए न्यौछावर हो जाना यह प्रेम का स्वभाव होता है। अतः
भक्तों के हृदय में विराजने वाले भगवान जागृत हैं। वह भक्तों के साथ बातें
करते हैं। हँसते हैं और भक्तों की एक-एक भावना के साथ वे अपना स्वरूप पधरा
देते हैं। भगवान भक्तों के साथ ओत प्रोत हो जाते हैं।