ऐसा था चंहुमुखी विकास



जब लाशें गिर रही थी तब महामानव टीवी पर एक बार भी सहानुभूति जताने, हिम्मत बंधाने, शोक व्यक्त करने नही आये, अपितु रैलियों में उमड़ी भीड़ को अपना सौभाग्य बताते रहे और आज जब लॉक डाउन से मामले नियंत्रित हो गए, संक्रमित लोग अव्यवस्था का शिकार होकर गोलोक पँहुच गए तब टीवी पर अभूतपूर्व सहानुभूति, ऐतिहासिक मानवीय सम्वेदनाये नम आंखों में दिखा कर अपनी मानवता दिखा रहे हैं। 

आप तब कहां थे जब अनगिनत लोगो को आपकी मौजूदगी और आपकी सहानुभूति की असल जरूरत थी।

कैसे कह दूं कि सब ठीक था, कैसे कह दूं कि रामराज्य था, कैसे कह दूं कि असुविधा नही थी, कैसे कह दूं विकास बोल रहा था हकीकत यह थी कि विकास की चीखें निकल गयी थी। आपके ही कई कट्टर समर्थक आपकी आंखों के सामने काल का ग्रास बन गए। वे लोग काल का ग्रास बन गए जिन्हें ट्विटर पर आप खुद फॉलो करते थे। समय का फेर देखिए उनका मोहभंग भी हुआ भी तो तब, जब उनकी सांसे कुछ मिनटों की मोहताज थी। 

जीवन की असली नसीहत उनके परिवारों ने तब ली है जब हमेशा से जयजयकार करने वाला हमेशा के लिए गहरी नींद में सो गया। कई मंत्रियों, विधायको और सांसदो को खुद की सहायता के लिए ट्वीट करना पड़ा। ऐसा था चंहुमुखी विकास।

भला हो छोटे साहेब का जिन्होंने खुद संक्रमित होने के बावजूद भी आइसोलेशन से बाहर आते ही यहां की अनियंत्रित स्थितियां सम्हाल ली अन्यथा की स्थिति का अंदाजा स्पष्ट ही है।

यह संयोग से हुआ अथवा दुर्योग से किन्तु दुर्भाग्य से आम आदमी के हृदय से अंधभक्ति का नशा उतारने के लिए इतना काफी है।

परसाई जी की बात लोगो ने करीब से महसूस की है जब उन्होंने कहा था "अंधभक्त होने के लिए प्रचण्ड मूर्ख होना पहली शर्त होती है।"

ईश्वर इस चराचर जगत का कल्याण करें।


(निखिलेश मिश्रा)

Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

जेवर एयरपोर्ट बदल देगा यूपी का परिदृश्य

भाजपा का आचरण और प्रकृति दंगाई किस्म की है- अखिलेश यादव