मानव मन का कपट व्यवहार
प्रायः दुनिया में कोई भी वस्तु वैसे ही होती है, जैसा कि हम उन्हें देखना चाहते हैं। "किसी चीज को सहज रूप से जैसी वह है, वैसी ही देखना यह संसार में सर्वाधिक कठिन चीजों में से एक है क्योंकि हमारे दिल और दिमाग बहुत ही जटिल हैं और हमने सहजता का गुण खो दिया है।"
जिन श्रीकृष्ण के भीतर कंस को अपना काल और शिशुपाल को अपना बैरी नजर आने लगा, उन्हीं श्रीकृष्ण के भीतर उद्धव को अपना मित्र तो पाण्डवों को अपना परम स्नेही नजर आने लगा। दुर्योधन को नीति का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा विदुर व शांति का संदेश लेकर आये श्रीकृष्ण, कुटिल नजर आने लगे तो सदा अपनी कुटिलता से धर्म विमुख करने वाले मामा शकुनी व अन्याय में सदा साथ देने वाले भ्राता दुशासन में अपना परम हितैषी नजर आने लगा।
मानव जीवन की कुटिलता, मानव मन का कपट व्यवहार, और मानव स्वभाव की छद्मता ही उसके जीवन को जटिल और असहज बना देती है। जीवन की जटिलता का अर्थ केवल इतना है कि हम किसी चीज का जैसी वो वास्तव में हैं, उस हिसाब से नहीं अपितु जैसे हम स्वयं हैं, उस हिसाब से मुल्यांकन करते हैं। मानव मन के इन आंतरिक विकारों का समन सत्संग और सद् ग्रंथ से ही संभव हो पाता है। जीवन में सत्संग और सद् ग्रंथों को भी स्थान देना सीखिए ताकि आपकी छुद्र ग्रंथियों का निर्मूलन हो और आपको एक नवीन दृष्टि प्राप्त हो सके।