अक्सर लोग संतोष की आड़ में अपनी अकर्मण्यता को छिपा लेते है
संतोष का अर्थ प्रयत्न ना करना नहीं है अपितु प्रयत्न करने
के बाद जो भी मिल जाए उसमें प्रसन्न रहना है। लोगों के द्वारा अक्सर
प्रयत्न ना करना ही संतोष समझ लिया जाता है। कई लोग संतोष की आड़ में अपनी
अकर्मण्यता को छिपा लेते है।
प्रयत्न करने में, उद्यम करने में, पुरुषार्थ करने में असंतोषी रहो
प्रयास की अंतिम सीमाओं तक जाओ एक क्षण के लिए भी लक्ष्य को मत भूलो तुम
क्या हो? यह मुख से मत बोलो लोगों तक तुम्हारी सफलता बोलनी चाहिए। कर्म करते समय सब कुछ भगवान पर ही निर्भर है इस भाव से कर्म करो
कर्म करने के बाद सब कुछ प्रभु पर ही निर्भर है, इस भाव से शरणागत हो जाओ
परिणाम में जो प्राप्त हो, उसे प्रेम से स्वीकार कर लो।