सुनाने को सब तैयार हैं मगर कोई सुनने को राजी नहीं
वर्तमान समय में परिवारों की जो स्थिति हो गयी है वह अवश्य चिन्तनीय है। घरों में आज सुनाने को सब तैयार हैं मगर कोई सुनने को राजी नहीं, रिश्तों की मजबूती के लिये हमें सुनाने की ही नहीं अपितु सुनने की आदत भी डालनी पड़ेगी। माना कि आप सही हैं मगर परिवारिक शान्ति बनाये रखने के लिये बेवजह सुन लेना भी कोई जुर्म नहीं, बजाय इसके कि अपने को सही साबित करने के चक्कर में पूरे परिवार को ही अशांत बनाकर रख दिया जाये।
अपनों को हराकर आप कभी नहीं जीत सकते, अपनों से हारकर ही आप उन्हें जीत सकते हैं। जो टूटे को बनाना और रूठे को मनाना जानता है, वही तो बुद्धिमान है। आज हर कोई अधिकार की बात कर रहा है मगर अफ़सोस कोई कर्तव्य की बात नहीं कर रहा। आप अपने कर्तव्य का पालन करो, प्रतिफल मत देखो। जिन्दगी की खूबसूरती केवल इतनी नहीं कि आप कितने खुश हैं, अपितु ये है कि आपसे कितने खुश हैं।