समय को कोई टाल नहीं सकता, भगवान सबका समय बांधे हैं
भगवान सबका समय बांधे हैं, समय को कोई टाल नहीं सकता। लड़का, लड़की, आदमी, धन, मकान, खेती सब भगवान की है, अपना कुछ नहीं है समय, स्वांसा, शरीर भगवान का है जो अपना माने है, वह मौत और भगवान को भूला है पेट में भगवान खाने को देते थे जब पैदा किया तब माताजी का दूध देने लगे अब सयाने भये तो अन्न पानी देते हैं तुम सब क्या जानो, अपनी अपनी भाग्य लेकर आते हैं, वही खाते पीते हैं नौकरी जो ईमानदारी से करते हैं, उन की दोनों तरफ जैकार होती है जो बेइमानी करता है उसके पैसे सब घर के लोग खाते है सबको नरक होता है।
महाराज
जी यहाँ पर कितने सरल शब्दों में हमें सार्थक जीवन जीने का मार्ग दिखा रहे
हैं अगर हम इन पर चलना आरम्भ कर दें या चलने की ईमानदार कोशिश नियमित रूप
से करने लगें तो हमें जीवन में शांति मिलना निश्चित है, वो शांति जिसकी खोज
में कुछ लोग सारा जीवन तक लगा देते हैं जीवन में सुख भी होगा। भगवान सबका समय बांधे हैं, समय को कोई टाल नहीं सकता जब
हम संघर्ष के समय से गुज़र रहे हों तो हमें ये अपने ध्यान में रखना है कि
जो भी हमारे हित में है (ज़रूरी नहीं है ये वैसा ही हो जैसे हमने सोचा हो),
वो परम आत्मा की तय की हुई घड़ी पर फलीभूत होगा ना उसके पहले और ना उसके
बाद !!
हम महाराज जी के भक्तों के हर काम में उनका आशीर्वाद होता है! इसलिए
इस निर्धारित समय में उनकी मर्ज़ी भी होती है ये निश्चित है तब तक हमें
धैर्य रखना होगा और इन बातों को अपनेआप को निरंतर स्मरण कराते रहना होगा।
बस हमें उन पर श्रद्धा रखनी है ये भक्ति ही हमारी शक्ति है लड़का, लड़की, आदमी, धन, मकान, खेती सब भगवान की है, अपना कुछ नहीं है जो
हमारे प्रियजन हैं, ये सब वही है जिनके साथ हमारा पूर्व जन्म का लेन -देन
है जिसे हमें उनके साथ अपना धर्म निभाकर, अर्थात कर्म करके इस जन्म में
हिसाब बराबर करना है पूर्व जन्म के कर्मों की हिसाब से ही ईश्वर हमें मकान,
धन -संपत्ति इत्यादि देता है अर्थात अपना कुछ भी नहीं है, सब उस परम आत्मा
की ही लीला का फल है।
पूर्व जन्मों की तरह इस जन्म में भी, जब हम अर्थी पर
चढ़ कर इस संसार से जाएंगे तो संतान, पति/पत्नी, धन- संपत्ति इत्यादि सब यही
छूट जाएगा इसलिए जहाँ तक हो सके इस सबके मोह से हमें ऊपर उठना है अपने ही
सुख -शांति के लिए क्योंकि जितना अधिक मोह होगा उतना ही छोड़ते समय पीड़ा
होगी और छूटना निश्चित है। समय, स्वांसा, शरीर भगवान का है जो अपना माने है, वह मौत और भगवान को भूला है। परम
सत्य-जो हम जितनी जल्दी समझ लें उतना ही हमारे लिया अच्छा है मन को
शांति मिलेगी वास्तव में हमारे लिए अच्छा होगा यदि हम सब, महीने में एक बार
महाराज जी के इस उपदेश को पढ़ें, मनन करें।
पेट में
भगवान खाने को देते थे। जब पैदा किया तब माताजी का दूध देने लगे अब सयाने
भये तो अन्न पानी देते हैं तुम सब क्या जानो, अपनी अपनी भाग्य लेकर आते
हैं, वही खाते पीते हैं। संभवतः महाराज जी यहाँ हमारी
संतान के सन्दर्भ में हमें समझा रहे हैंजैसा ऊपर कहाँ गया है हमारी संतान
भी पूर्व जन्म की वो ही आत्माएं हैं जिनके साथ हमारे कर्मों के हिसाब का
लेन - देन है वे भी अपने पूर्व कर्मों के हिसाब से अपना भाग्य स्वयं लेकर
आये हैं। हमारा धर्म संतान का यथासंभव लालन -पालन करना है, अच्छी शिक्षा
देनी है और सबसे सबसे महत्वपूर्ण - अच्छे संस्कार देने हैं इसके आगे हमारी
संतान समय आने पर अपनी आजीविका कैसे चलनी है, इस विषय पर कहाँ, क्या करना
है, विवाह कहाँ होगा, कब होगा इत्यादि -अपने भाग्य के अनुसार अपना रास्ता
ढूंढ ही लेगी।
संतान के जीवन के इन सब कार्यों को क्रियान्वित करने के लिए
वो सर्व शक्तिशाली ईश्वर हमारे, जाने- अनजाने बहुत से लोगों को निमित्त
बनाता है, उनसे कर्म करवाता है हम चिंता फिर भी करते हैं पर उसकी आवश्यकता
नहीं है इसके अतिरिक्त जहाँ पर भी हम इनके साथ अपने मोह की अति करेंगे,
वैसे ही हमारी अपेक्षाएं होंगी और हमारी इच्छा अनुसार परिस्थितियां ना होने
से हमें ही बाद में पीड़ा उठानी पद सकती है। नौकरी जो
ईमानदारी से करते हैं, उन की दोनों तरफ जैकार होती है। जो बेइमानी करता है
उसके पैसे सब घर के लोग खाते है। सबको नरक होता है।
धन
सम्पत्ति केवल ईमादारी से ही कमानी है। इससे हमें सम्मान मिलेगा। सुकून भी
मिलेगा। जो छल -कपट से, बेईमानी से धन -संपत्ति कमाता है वो स्वयं तो पाप
करता ही है और आगे- पीछे इस कर्म के बुरे फल भी निश्चित ही पाता है परन्तु
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात ये होती है वो उस पाप का भागीदार अपने प्रियजनों
को भी बनाता है जो इस पाप की कमाई का भोग भी जाने -अनजाने में करते हैं।
महाराज जी सबका भला करें।