मन का रोग मिटाना कठिन जरूर है मगर असम्भव नहीं
तन की अस्वस्थता उतनी घातक नहीं जितनी कि मन की अस्वस्थता
है। तन से अस्वस्थ व्यक्ति केवल अपने को व ज्यादा से ज्यादा अपनों को ही
दुखी करता है। मगर मन से अस्वस्थ व्यक्ति स्वयं को, परिवार को, समाज को और
अपने सम्पर्क में आने वाले सभी को कष्ट देता है। तन का रोग मिटाना कदाचित संभव भी है। मगर मन का रोग मिटाना असम्भव
तो नहीं कठिन जरूर है।
तन का रोगी तो रोग को स्वीकार कर लेता है लेकिन मन
का रोगी कभी भी रोग को स्वीकार नहीं करता और जहाँ रोग की स्वीकारोक्ति ही
नहीं वहाँ समाधान कैसे सम्भव हो सकता है ? दूसरों की उन्नति से जलन, दूसरों की खुशियों से कष्ट, दूसरों के
प्रयासों से चिन्ता, अपनी उपलब्धियों का अहंकार यह सब मानसिक अस्वस्थता के
लक्षण हैं। भजन, अध्यात्म और भगवद शरणागति ही इस बीमारी का इलाज है।