ईश्वर कहीं भी, कैसे भी, कुछ भी, किसी के साथ भी कर सकता है
महाराज जी भक्तों को उपदेश दे रहे हैं कि भगवान भाव के भूखे हैं अपना भाव (को) विश्वास बनाओ। जीव की गती, भाव से (ही) होती है निसंदेह सब कुछ हमारे भाव पर ही निर्भर करता है तदुपरांत भाव ही हमारा विश्वास बनता है मानो तो है और ना मानने के तो अनेकों कारण हो सकते हैं। ऐसा भी देखा गया है की कुछ लोग जिन्हें ईश्वर के अस्तित्व में कोई शंका रही है तो उनके जीवन में कभी ना कभी ऐसी परिथितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं की वे उस सर्वशक्तिशाली परम आत्मा को, उसकी लीला को, उसके निष्पक्ष न्याय को, उसकी कृपा को मानने के लिए बाध्य हो जाते हैं और ऐसे अनुभव (जो कभी कभी कष्टदायक होते हैं) के बाद उन लोगों के भाव ईश्वर के लिए दृढ़ होते है।
उन्हें ये स्पष्ट हो जाता है कि ईश्वर तो कहीं भी, कैसे भी, कुछ भी, किसी के साथ भी कर सकता है तो क्यों ना हम ऐसे अनुभवों से बचने का प्रयत्न करें और महाराज जी द्वारा दिखाए गए भाव के मार्ग पर, अभी, इसी समय, इसी पल, से चलें महाराज जी हमें समय - समय पर समझाते रहे हैं कि भाव रूपी बेतार के तार से, भगवान के दरबार में क्षण-क्षण का समाचार पहुँचता रहता है ऐसे भाव केवल हमारे और उस परम आत्मा के बीच होते हैं, या हमारे या महाराज जी के बीच होते हैं इन भावों में हमारा किसी भी प्रकार का दिखावा व्यर्थ है ना वेश-भूषा का, ना किसी विशेष चढ़ावे का, ना ही किसी प्रकार की ऊपरी भक्ति का और साथ ही साथ हमें ये नहीं भूलना है कि जैसे हमारे भाव उस परमात्मा के लिए हैं।
महाराज जी के लिए हैं वैसे ही भाव उनके हमारे लिए भी हैं और हाँ जब हमारे भाव महाराज के लिए सच्चे होंगे तो ये संभव ही नहीं है की हमारे कर्म महाराज जी के उपदेशों के विपरीत हो। प्रायः ये भी होता है की अपने प्रारब्ध काटते समय, जब हम संघर्ष के समय से गुज़र रहे होते हैं, संकट में होते हैं और हमारे प्रयत्नों का, हमारी प्रार्थना का फल हमारी अपेक्षा अनुसार हमें नहीं मिलता तो हम विचलित हो जाते हैं, हमारे भाव उस परम आत्मा के लिए, महाराज के लिए कमज़ोर पड़ने लगते हैं। ऐसे में हमें चिंता नहीं करनी है और धैर्य रखना होगा उस परिस्थिति से निकलने के लिए निरंतर कर्म करते रहना होगा और अपने भाव उस परम आत्मा के लिए, महाराज के लिए बनाए रखना होगा इसके लिए हमें अपने आप को याद दिलाते रहना होगा।
नियमित रूप से, की हम महाराज की शरण में हैं और हमारे साथ जो भी हो रहा है, जो आगे होगा वो सब महाराज जी के मर्ज़ी से हो रहा है इसलिए हमारा बुरा तो हो ही नहीं सकता। जब हमने महाराज जी के आशीर्वाद से अपना धर्म निभाया है, अर्थात अपना कर्म किया है, तो वो परम आत्मा भी अपना धर्म निश्चित ही निभाएगा-उस समय पर जो हमारे लिए सबसे ठीक होगा हमारा ऐसा दृढ़ विश्वास ही हमारी नैया को कम से कम पीड़ा में पार लगा सकता है। महाराज जी आगे कहते हैं की जिन भक्तो को ईश्वर के समीप जाना है, अपने जीवन में गति पाना चाहते हैं, मुक्ति की अभिलाषा है, मोक्ष पाना चाहते हैं तो उनके लिए ऐसा तभी संभव हो सकता है जब उनके भाव उस सर्व-शक्तिशाली, सर्वज्ञ, सर्व-व्यापी ईश्वर के लिए अडिग हों - तब भी जब इस मार्ग पर उनके धैर्य की परीक्षा हो रही हो। और इस मार्ग पर चलने वाले महाराज जी के भक्तों के लिए बिना महाराज जी के मार्गदर्शन के ऐसा होना संभव नहीं है सद्गुरु का आशीर्वाद अनिवार्य होता है।
महाराज जी सबका भला करें!