मन को साध लेना ही साधना है
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं मन बड़ा ही चंचल प्रमथन स्वभाव
वाला, दृढ और बलवान है।इसलिए इसे रोकना वायु को रोकने जैसा है। मन को साध
लेना ही साधना है। जिसका मन वश में नहीं है वही तो वेवश है। मन ना तो कभी तृप्त होता है और ना ही एक क्षण के लिए शांत बैठता
है। यह अभाव और दुःख की और बार- बार ध्यान आकर्षित कराता रहता है।
अपमान ना
होने पर अकारण ही यह अपमान होने का अहसास कराता है। मन ही मान-अपमान का बोध
कराता है। अशांति कहीं और से नहीं आती भीतर से आती है, इसका जन्मदाता मन है जिसने मन
को साध लिया वही तो मुनि है। निरन्तर हरिनाम जप के अभ्यास से इस मन को
नियंत्रित किया जा सकता है,जो भीतर शांत है उसके लिए बाहर भी सर्वत्र शांति
है।