काम माने वासना ही नहीं अपितु कामना भी है
भगवान शिव इसलिये देवों के देव हैं क्योंकि उन्होंने काम को भस्म किया है अधिकतर देव काम के आधीन हैं पर भगवान शिव राम के आधीन हैं उनके जीवन में वासना नहीं उपासना है शिव पूर्ण काम हैं, तृप्त काम हैं।
काम माने वासना ही नहीं अपितु कामना भी है, लेकिन शंकर जी ने तो हर प्रकार के काम, इच्छाओं को नष्ट कर दिया शिवजी को कोई लोभ नहीं, बस राम दर्शन का, राम कथा सुनने का लोभ और राम नाम जपने का लोभ ही उन्हें लगा रहता है।
भगवान शिव बहिर्मुखी नहीं अंतर्मुखी रहते हैं अंतर्मुखी रहने वाला साधक ही शांत, प्रसन्न चित्त, परमार्थी, सम्मान मुक्त, क्षमावान और लोक मंगल के शिव संकल्पों को पूर्ण करने की सामर्थ्य रखता है।