प्रत्येक मनुष्य को भगवान शिव की ही तरह त्रिनेत्रधारी बनने का प्रयास करना चाहिए



प्रत्येक मनुष्य को भगवान शिव की ही तरह त्रिनेत्रधारी बनने का प्रयास करना चाहिए दो चक्षु बाहरी सृष्टि के लिए और एक चक्षु अंतर्दृष्टि के लिए।

जब तक हमारे पास भीतरी दृष्टि नहीं होगी तब तक हम अपने जीवन का ठीक-ठीक मूल्यांकन करने में सफल नहीं हो पायेंगे भीतरी दृष्टि ज्ञान की दृष्टि है भीतरी दृष्टि विवेक की दृष्टि है दो आँखों से जगत को देखो और तीसरी आँख से जगत का मूल्यांकन करो क्या हमारे हित में है और क्या हमारे अहित में है  क्या  हमारे लिए कल्याण कारक है और क्या हमारे लिए अनिष्टकारी है ? 

बाहरी दो आँखों से जगत का उपभोग करो मगर भीतरी तीसरी विवेक रूपी आँख से जो अकल्याणकारक है, अरिष्टकारक है, उद्वेगकारक है और जीवन के उत्थान में बाधक है उसका प्रतिरोध करना भी सीखो यही त्रिनेत्रधारी भगवान शिव के तीसरे नेत्र का रहस्य है।

Popular posts from this blog

स्वस्थ जीवन मंत्र : चैते गुड़ बैसाखे तेल, जेठ में पंथ आषाढ़ में बेल

जेवर एयरपोर्ट बदल देगा यूपी का परिदृश्य

भाजपा का आचरण और प्रकृति दंगाई किस्म की है- अखिलेश यादव