सिद्धा जल ही में रहै, कमल भेक अरू मीन


महाराज जी भक्तों को समझा रहे हैं कि-

सिद्धा जल ही में रहै, कमल भेक अरू मीन।
मीन भेक जान्यों नही, भ्रमर आय रस लीन॥ 

अर्थ:- संत सिद्धादास जी कहते हैं कि जल में कमल, मेढ़क और मछली एक साथ रहते हुए भी मेढ़क और मछली उस कमल के रस व महत्व को नहीं जान पाते पर भौंरा दूर से आकर कमल के पराग की सुगन्ध ले जाता है। संभवतः महाराज जी संत सिद्धादास के उपदेश के निमित्त यहाँ पर भक्तों को समझा रहे हैं की ये ज़रूरी नहीं है की गुरु के धाम में जो भी आस -पास दिखते हों, रहते हों, उन्हें गुरु का कृपा प्रसाद मिला ही हो। संभवतः इसलिए क्योंकि उन्होंने अपने ऊपर विकारों का आवरण डाला हुआ हो (जैसे लोभ, अहंकार इत्यादि)उनके ये विकार रूपी आवरण, ये पर्दा इतना मोटा होता है की गुरु के धाम में रहते हुए भी गुरु के उपदेश इन तक नहीं पहुँच पाते अर्थात अपने जीवन में ऐसे लोग गुरु के उपदेशों को उतार पाने में असमर्थ रहते हैं गुरु के निकट रहते हुए भी उनके भाव शुद्ध नहीं हो पाते।

अपने जीवन को वे सार्थक नहीं बना पाते और कुछ भक्त जो गुरु धाम के बाहर से आए हुए होते हैं (या ऐसे जैसे हमारे महाराज जी कुछ भक्त जिन्होंने उनके कभी दर्शन भी नहीं किये हैं) -वे गुरु की कृपा के पात्र बन जाते हैं। संभवतः इसलिए क्योंकि उन्हें गुरु के ऊपर बहुत विश्वास होता है की वो गुरु के संरक्षण में है फिर चाहे उनका अच्छा समय हो या संघर्ष वाला हो उनमें गुरु के लिए समर्पण की भावना होती है उनके भाव गुरु के लिए सच्चे होते हैं ऐसे सच्चे भाव उनके विकारों को नियंत्रण करने में भी मददगार साबित हो सकते हैं गुरु के सच्चे शिष्य उनके उपदेशों पर चलने की ईमानदार कोशिश करते हैं निरंतर जैसे हमारे महाराज जी के मुख्य उपदेश हैं जिन पर महाराज जी भक्तों को चलने का प्रयास करना चाहिए - अपने ही कल्याण हेतु और महाराज जी की कृपा का पात्र बनने के लिए-

1. अपने -परायों को, अपने किसी स्वार्थ के लिए, दुःख ना देने की कोशिश करनी चाहिए, विशेषकर अपनी वाणी से ……….क्योंकि फल तो हर एक कर्म का मिलेगा ही मिलेगा इसलिए इस बारे में अंततः जितना कम दुःख झेलना पड़े उतना ही हमारे लिए अच्छा है

2. बेईमानी के पैसे से ना खुद और ना अपने परिवार का पेट पालें, छल -कपट से धन -संपत्ति ना कमाएं -ये बहुत ही बुरा कर्म है क्योंकि इसमें हम अपने साथ -साथ अपनों को भी जाने -अनजाने में पाप का भागीदार बनाते हैं

3. विनम्र बनें। अपने आप को याद दिलाते रहें की जो कुछ भी हमारे पास है, हमारे जीवन में जो भी अच्छा -बुरा है, वो है तो हमारे कर्मों का फल ही है, लेकिन है उस परम आत्मा की कृपा से, महाराज जी के मर्ज़ी से। क्षणिक भी है

4. निस्वार्थ भाव से और बिना किसी भी प्रकार के अहंकार के ज़रूरतमंदों की मदद करें- यथासंभव ऐसा कर्म करने में यदि उस वंचित की जाति और धर्म जानने का विचार भी आता है तो उसे उसी समय नकार देना है महाराज जी के सच्चे भक्त, उनके उपदेश अनुसार, जात-पात को नहीं मानते

5. उस परम आत्मा के समीप जाने के लिए किसी भी प्रकार के अहंकार रूपी परदे से किनारा करना होगा -फिर चाहे वो धन -संपत्ति का अहंकार हो, रूप, ओहदा, बल, जाति या अपने आप को बड़ा भक्त मानने का ही क्यों ना हो इत्यादि

महाराज जी सबका भला करें!

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