पाप करो या पुण्य बंधन तो दोनों में ही है
जब तक जीवन है तब तक कर्म करना पड़ेगा क्योंकि एक क्षण भी देहधारी कर्म किये बिना नहीं रह सकता। प्रकृति के गुणों के वशीभूत होकर कर्म करना ही पड़ेगा। कर्म से छूट नहीं सकते कर्म तो करना ही है जरूरत है तो कर्म के बंधन से छूटने की है।चाहे पाप करो या पुण्य बंधन तो दोनों में ही है।
पाप यदि लोहे की जंजीर का बंधन है तो पुण्य सोने की जंजीर का बंधन। कर्म के बंधन से छूटना है तो कर्म को यज्ञ बनाओ क्योंकि यज्ञ के सिवा जितने भी बन्धन है, वे सभी मनुष्य को बाँधते हैं गीता में भी भगवान ने कहा है कि तू कर्म को यज्ञ बना।