परमआत्मा के दरबार में द्वैत से भरी भक्ति का कोई मोल नहीं
पढ़ना, सुनना, लिखना न फले,
जब अमल नहीं उन बातों पर,
जब तन छूटी तब पड़ी,
पिस जैहौ जमन (ज़माने) की लातों पर।
महाराज जी ने ये उपदेश संभवतः उनके लिए दिया है, जो अपने आप को ज्ञानी मानते -मनवाते हैं, धार्मिक पुस्तकें पढ़ी हुई है, उनमें से कुछ लोग उससे अपनी जीविका भी चलाते हैं परन्तु इन पुस्तकों -ग्रंथों के ज्ञान पर स्वयं अमल नहीं करते।
महाराज जी समझाते हैं कि ऐसे लोगों का ये दोहरा मापदंड उनका कल्याण नहीं होने देगा। ऐसे लोगों को उनकी भक्ति का लाभ नहीं मिलता। उस परम आत्मा के दरबार में ऐसी द्वैत से भरी भक्ति का कोई मोल नहीं है।
कभी कभी ऐसा भी होता है ऐसे किताबी ज्ञानी लोगों को कुछ भोले- भाले लोग दुर्भाग्यवश, अपने जीवन का आदर्श मानने लगते हैं। और जब इन भोले -भाले लोगों की उम्मीदों पर इन किताबी ज्ञानी लोगों का आचरण खरा नहीं उतरता तो ऐसे किताबी ज्ञानी लोगों का सार्वजानिक अपमान तिरस्कार भी संभव है।
इसलिए जिन्होंने धार्मिक ग्रंथों का अध्यन किया है और इस ज्ञान को दूसरों को बांटते भी हैं उनका समाज की ओर एक और महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व होता है।
अपने आचरण को धर्मिक ग्रंथों के ज्ञान के अनुसार करने का। इससे उनका आदर सम्मान तो होगा ही, उन्हें स्वयं भी प्रसन्नता होगी और ईश्वर का आशीर्वाद भी मिलेगा। इस सन्दर्भ में संभवतः इसीलिए कहा गया कि विद्या विनय शोभते अर्थात विद्या और ज्ञान को विनय यानि नम्रता ही शोभा देता है।
और जो लोग ग्रंथों के ऐसे दिव्य ज्ञान पर अमल करना तो दूर बल्कि उसके विपरीत आचरण करते हैं -लोभ, क्रोध, विशेषकर अहंकार करते हैं, दूसरों को कटु वचन कहते हैं, दुःख पहुंचाते है, महाराज जी कहते हैं की उन्हें तो बहुत पाप लगता है। वो सर्वज्ञ, सर्वव्यापी और सर्वशक्तिशाली परम आत्मा जब उनके ऐसे बुरे कर्मों का फल देता है तो ऐसे लोगों को अत्यधिक शारीरिक और मानसिक दुःख झेलना पड़ सकता है।
कभी-कभी जब ऐसा बुढ़ापे के समय होता है तो बहुत अधिक पीड़ा होती है। वे असहाय हो जाते हैं। जीवन नर्क हो जाता है।
वैसे जिन लोगों की कथनी और करनी में फ़र्क़ हो और वे इस बात को जानते और मानते भी हैं (अपने आप से), उन्हें आजकल के इंटरनेट, सोशल मीडिया, फेसबुक के युग में (जहाँ बातें छुपाना आसान नहीं होता)- दूसरों को उपदेश देने से बचना चाहिए (अपने प्रियजनों के साथ भी) ऐसा करने से उनका आत्मसम्मान तो बरक़रार रहेगा ही, ज़िंदगो भी सुकून से कटेगी।
महाराज जी सबका भला करें!