नवरात्रि के पहले दिन करें माँ शैलपुत्री की पूजा और जानिए मंत्र



पौराणिक धर्म शास्त्रों के मुताबिक नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है. हिंदू मान्यता में इसका विशेष महत्त्व है. नवरात्रि में शैलपुत्री पूजन का बेहद महत्त्‍व है. नवरात्रि के पहले दिन माँ शैलपुत्री की पूजा होती है. नवरात्रि के वो कौन से मंत्र है जिनका जाप कर आप मां को प्रसन्न कर सकते हैं.

नवरात्रि का पहला दिन देवी माँ शैलपुत्री की पूजा करने के लिए समर्पित है,  जिन्हें शास्त्रों में पर्वतराज की बेटी के रूप में वर्णित किया गया है. शब्द ‘शिला’ का अर्थ है चट्टान या पहाड़ और ‘पुत्री’ का अर्थ है ‘बेटी’. शैलपुत्री को करोड़ों सूर्यों और चन्द्रमाओं की तरह माना जाता है. वह एक बैल (नंदी) पर सवार होती हैं और अपने हाथों में त्रिशूल और कमल धारण करती हैं और उनके माथे पर एक चाँद है.

सुख और समृद्धि की होती है प्राप्ति:-

हिंदू मान्यता के मुताबिक माँ शैलपुत्री की पूजा करने से मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है. जो भी भक्‍त सच्ची श्रद्धा भाव से मां शैलपुत्री का पूजन करता है. उसे सुख और सिद्धि की प्राप्‍ति होती है.

जानिए कौन हैं माँ शैलपुत्री

पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक बार प्रजापति दक्ष ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया. उन्होंने इस दौरान सभी देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया लेकिन उन्होंने भगवान शंकरजी को इस यज्ञ में निमंत्रण नहीं भेजा. जब सती ने सुना कि उनके पिता एक विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, इसके बाद उनका मन व्याकुल हो उठा. उन्होंने अपनी यह इच्छा शंकरजी को बताई. सब बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि प्रजापति दक्ष किसी वजह से हमसे नाराज हैं. उन्होंने अपने यज्ञ में सारे देवताओं को निमंत्रण भेजा. उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं लेकिन उन्होंने हमें नहीं बुलाया. इस बारे में कोई सूचना तक नहीं भेजी. ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना ठीक नहीं होगा.

भगवान शंकरजी के समझाने का कोई खास असर सती पर नहीं हुआ. अपने पिता का यज्ञ देखने औऱ अपनी माता और बहनों से मिलने की उनकी इच्छा कम नहीं हुई. जब भगवान शंकरजी ने देखा कि उनके समझाने के बाद भी सती पर इस बात का कोई असर नहीं हो रहा है तो उन्होंने उन्हें वहाँ जाने की इजाज़त दे दी. जब सती अपने पिता के घर पहुंची तो उन्होंने वहां देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा है. सभी लोग मुंह फेरे हुए हैं. केवल उनकी माता ने ही उन्हें प्यार से गले लगाया. उन्होंने देखा कि बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास अधिक था.

अपने घरवालों के इस बर्ताव को देखकर उन्हें बहुत ठेस पहुंची. इतना ही नहीं उन्होंने यह भी देखा कि वहां चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है. साथ ही दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे. यह सब सुनकर सती बेहद गुस्से में आ गईं और वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न पाईं. उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर गलती कर दी है. पति के अपमान से आहत होकर उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया. जब भगवान शंकर को यह पता चला उन्होंने अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया. फिर सती ने अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और वह शैलपुत्री कहलाईं.

इसलिए होती है माँ शैलपुत्री का पूजन:-

पौराणिक कथाओं के मुताबिक देवी माँ शैलपुत्री चंद्रमा पर शासन करती हैं और अपने भक्तों को हर तरह का सौभाग्य प्रदान करती हैं. आदिशक्ति का यह रूप कुंडली में चंद्रमा के पुरुष प्रभाव को दूर करता है. शैलपुत्री के अन्य नाम हेमवती और पार्वती हैं. यह माँ दुर्गा का सबसे महत्वपूर्ण रूप है और इसलिए नवरात्रि के पहले दिन इनकी पूजा की जाती है.

माता की उपासना के लिए मंत्र:-

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥

ध्यान मंत्र:-

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।

वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥

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