दूसरों को दुःख पहुँचाने से, जो पुण्य हमने अर्जित किया है हम वो खो देते हैं
जप-पाठ-ध्यान करने वाला किसी को अपने सरीर से दु:ख न दे नहीं तो (पाँचों) चोर सब लूट लेते हैं। हममें से बहुत से लोग जप करते हैं, पाठ करते हैं, सत्संग में जाते हैं, भजन -कीर्तन करते हैं इत्यादि -संभवतः इस अपेक्षा में की ऐसा करने से हमें लाभ मिलेगा। हमारा कल सुखी होगा (क्योंकि हमारा आज जो भी है, जैसा भी है वो तो हमारे पूर्व कर्मों का फल है) तो ये सब तभी संभव है।
जब हम दूसरों को अपने शरीर के किसी भी अंग से, विशेषकर अपनी जिह्वा से, अपनी वाणी से दुःख ना पहुंचाएं। संभवतः महाराज जी यहाँ पर हमें समझा रहे हैं कि दूसरों को दुःख पहुँचाने के बुरे कर्म करने से, हमारा पुण्य, जो हमने जप, पाठ, सत्संग, भजन कीर्तन इत्यादि करने से अर्जित किया है -वो हम खो देते हैं। वैसे दूसरों को दुःख हम प्रायः काम, मोह, लोभ और अहंकार-क्रोध-इन पांच विकारों के वशीभूत होकर देते हैं। हमारे जीवन में सर्वार्धिक समस्याएं, बाधाएं, दुःख, पीड़ा सब इनकी वृत्ति की वजह से होती है। हम इन पांच विकारों के वशीभूत होकर दूसरों को दुःख पहुंचाते हैं, पीड़ा देते हैं, उनकी आँख में आंसू लाते हैं। संभवतः इस अपेक्षा में कि ऐसा करने से हमें लाभ होगा, सुख मिलेगा परन्तु ऐसा होता नहीं हैं। दूसरों को दुःख देकर दुःख ही मिलेगा - ये अटल सत्य है। प्रायःहमारा चैन -शांति भी लुट जाता है। ये पांच विकार जिन्हें संभवतः महाराज जी यहाँ पर पांच चोर कह रहे हैं ये हम सब मनुष्यों में होते हैं।
एक सच्चा साधक इन पांचों चोरों पर विजय प्राप्त कर लेता है, इनका दमन करने में सफल हो जाता है (ये अलग बात है की आज के युग में सच्चे साधक मिलना बहुत ही दुर्लभ बात है) बाकी सब लोग, जिनमें गृहस्थ में शामिल है वे इनका जितना भी शमन (वशीकरण) करने में सफल हो पाएं -उतना हो उनके जीवन में सुख -शांति आएगी और इस सन्दर्भ में कहीं ना कहीं मुझे लगता है -जब जागो तब सवेरा जिस दिन हमें ये एहसास हो जाए की जो हम कर रहे हैं वो क्यों कर रहे हैं, इसका क्या परिणाम होगा और क्या इस परिणाम से हमें दीर्घावधि सुख की प्राप्ति होगी ?? वह दिन हमारे जीवन में एक सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता रखता है। हमारे इस प्रकार चैतन्य होने से बहुत संभव है कि हमारा विवेक, जो हम सबके पास है, हमें सही मार्ग दिखा दे ये प्रक्रिया तब सरल हो जाती है जब इसमें महाराज जी का आशीर्वाद भी हो और यह उनके लिए हमारे भाव पर संभव है सब भाव के खेल ही तो है।
महाराज जी सबका भला करें!